भाद्रपद शुक्ल दशमी—लोकदेवता वीर तेजाजी का निर्वाण दिवस
राजस्थान सहित देश के आधे राज्यों में वीर तेजाजी को लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है। तेजाजी का जन्म राजस्थान के नागौर जिले में खड़नाल गांव में माघ शुक्ल चौदस संवत 1130 तदानुसार 29 जनवरी 1074 को हुआ। पिता का नाम ताहरजी (थिरराज) और मात रामकुंवरी था। ताहरजी खड़नाल गांव के मुखिया थे। तेजाजी शूरवीर, सेवाभावी और त्यागी थे। लोगों की सहायता करना वह अपना धर्म समझते थे। तेजाजी का निधन भाद्रपद शुक्ल दशमी संवत 1160 तदानुसार 28 अगस्त 1103 किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से हुआ। उनके निर्वाण दिवस को तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर उनके थान अर्थात स्थान पर मेले आयोजित किए जाते है।
इसलिए पूजे जाते है तेजाजी
तेजाजी ने महज 29 साल जीवित रहे लेकिन, उन्होंने इतनी कम उम्र में अपने सेवाभावी स्वभाव और वचनवद्धता के कारण लोकदेवता के रूप में प्रसिद्धि हासिल की। उन्हें गोगा जी की तरह सांपों के देवता के रूप में पूजा जाता है। लोकमान्यता के अनुसार, तेजाजी का विवाह बचपन में ही पनेर गांव में रायमलजी की बेटी पेमल के साथ हो गया था। इस विवाह के बाद उनके पिता ताहरजी और पेमल के मामा के बीच किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई और इस झगड़े में पेमल के मामा की मृत्यु हो गई। छोटे होने की वजह से तेजाजी को यह बात नहीं बताई गई। तेजाजी जब बड़े हुए तो उनकी भाभी ने उनको यह बात ताना मारते हुए बता दी। तेजाजी उसी वक्त अपनी घोड़ी लीलण पर सवार होकर अपने सुसराल रवाना हो गए। रास्ते में उन्हें एक जगह आग नजर आई। इस आग में एक सांप जोड़ा जल रहा था। उन्होंने नाग को बचा लिया लेकिन, उसका नागिन नहीं बची। सांप जोड़े के बिछुड़ जाने से क्रोधित हो गया और वह तेजाजी का डंसने लगा। तेजाजी ने पत्नी को सुसराल से लाने की बात कहते हुए लौटते समय डंस लेने को कहा। तेजाजी से वचन लेकर सांप ने उन्हें आगे जाने दिया। सुसराल से जब वह अपनी पत्नी को लेकर लौट रहे थे तो एक रात वह पत्नी की सहेली लाछा गूजरी के यहां विश्राम के लिए रूक गए। इस दौरान कुछ लुटेरे लाछा की गायों को लूट कर ले गए। लाछा की प्रार्थना पर वे उन लुटेरों से संघर्ष करने चले गए और सारी गायों को बचा लाए। लेकिन, इस संघर्ष में वे बुरी तरह घायल हो गए। वह घायल अवस्था में ही वहां से चल दिए और वहां पहुंचे जहां उन्होंने सांप को बचाया था। सांप को दिए वचन के मुताबिक वे बिल के पास गए और सांप से काटने के लिए कहने लगे। शरीर पर घाव थे इसलिए उन्होंने जीभ पर सांप से कटवा लिया। उनकी वहीं मृत्यु हो गई। कहा जाता है कि पेमल ने भी उनके साथ जान दे दी। सांप ने उनकी वचनबद्धता को देखते हुए उन्हें वरदान दिया। जिससे वह पूजनीय हो गए।
सांपों का देवता माना जाता है
गोगाजी की तरह तेजाजी को भी सांपों के देवता के रूप में पूजा जाता था। उनके स्थान या देवरे कई जगह देखने को मिल जाएंगे। जहां तेजाजी की तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी होती है। इन देवरो में सांप के काटने का इलाज किया जाता है। जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बांधी जाती है। तेजाजी के पुजारी को घोडला कहा जाता है। तेजाजी की गौ रक्षक एवं वचनबद्धता की गाथा लोक गीतों एवं लोक नाट्य में खूब प्रचलित है। ब्यावर में तेजा चौक में तेजाजी का प्राचीन थान है। नागौर के परवतसर में तेजा दशमी को मेला आयोजित होता है। तेजाजी को शिवजी का अवतार भी माना जाता है।