सघन वन विकसित करने की तकनीक बताई
जयपुर (विसंकें)। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम रही अपना संस्थान की सघन वन कार्यशाला गत 13 जुलाई को भीलवाडा में सम्पन्न हुई। इसमें सघन वन विकसित करने के सम्बंध में प्रयोग व तकनीक बताई गई। कार्यशाला का उद्घाटन महंत श्री संतदास महाराज, हाथीभाटा तथा संरक्षक त्रिलोकचन्द्र छाबड़ा ने किया। अपना संस्थान के प्रदेश सचिव विनोद मैलाना ने कार्यशाला की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि मियावाकी जंगल (सघन वन) जापान के 91 वर्षीय वनस्पति वैज्ञानिक अकीरा मियावाकी नाम की पद्धति के को-फाउंडर मुंबई से राधाकृष्ण नैयर एक दिवसीय कार्यशाला के लिए भीलवाड़ा आये, जहां उन्होंने बताया कि सघन वन कैसे विकसित किये जा सकते हैं। उन्होंने मियावाकी जंगल यानी 100 स्क्वायर मीटर एरिया में 400 स्थानीय विविध प्रजाति के पौधे लगाने की तकनीक के बारे में विभिन्न प्रकार की पद्धतियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने वनों से प्राप्त लाभों के बारे में भी जानकारी दी। कार्यक्रम में अपना संस्थान के अध्यक्ष सुनील चैधरी ने अध्यक्षीय उद्बोधन दिया। भीलवाड़ा अपना संस्थान के सचिव विनोद कोठारी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
क्यों कहा गया मियावाकी जंगल
91 वर्षीय अकीरा मियावाकी जापान के वनस्पति वैज्ञानिक हैं। साल 2006 में आपको विश्व का सर्वोच्च बोटानिकल सम्मान मिला। इसी पद्धति के भारत में को-फाउंडर मुम्बई के आरके नैयर के सान्निध्य में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित हुई। कार्यक्रम में राजस्थान के 20 स्थानों से 70 कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। कार्यशाला में मियावाकी जंगल यानी 100 स्क्वायर मीटर एरिया में 400 स्थानीय विविध प्रजाति के पौधे लगाने की तकनीक। इसकी विशेषताएं है कि न्यूनतम स्थान पर अधिकतम पौधे लगाना, न्यूनतम खर्च पर अधिकतम परिणाम, न्यूनतम समय में जंगल खड़ा होना, न्यूनतम संभाल दो ढाई वर्ष करनी है, जलस्तर बढ़ता है, एक-दो वर्षों में ही कई प्रकार के पक्षी, कीट पतंग ,भ्रमर और जैविक क्रमी आ जाते हैं। इस प्रकार के जंगल को मियावाकी जंगल कहा गया है।