जयपुर 3 मार्च (विसंके)। भारत सदैव संतो-ऋषि मुनियों और गुरू शिष्य परम्परा की धरती रहा है। जिसमें अनेक ऐसे उदाहरण देखने को मिले है, जिन्होनें इस परम्परा का सदैव पालन किया हो। गुरू शिष्य परम्परा की इस धरा पर एकल्वय का महान उदाहरण प्रेरणादायी रहा है। भारत की धरती पर ऐसे अनेक उदाहरण देखने और सुनने को मिलते है, जो आज भी राष्ट्र और समाज के हित के लिए इस परम्परा का निर्वहन करते है।
ऐसे ही एक संत योगी राजनाथ का छोटी काशी मे आगमन हुआ। बाडमेर के पचपदरा के बाला जी धाम खडेसरी से आये योगी राजनाथ पिछले आठ साल से गुरू की आक्षा मान खडे होकर साधना कर रहे है। 2008 में अपने गुरू संत योगी रविनाथ से गुरू दीक्षा प्राप्त की।
नाथ संप्रदाय से जुडे योगी राजनाथ ने पुणे से साधना प्रारम्भ की आपने एक-एक साल नासिक और सिरोही के शिवगंज तथा गत तीन सालो से बाडमेर के पचपदरा में आप साधना कर रहे है।