107 साल की महिला को पद्मश्री, नंगे पैर पहुंची, सम्मान लेकर राष्ट्रपति को दिया आशीर्वाद।
जब थीमक्का से 33 साल छोटे राष्ट्रपति ने पुरस्कार देते वक्त उनसे चेहरा कैमरे की तरफ करने को कहा तो उन्होंने राष्ट्रपति का माथा छू लिया और आशीर्वाद दिया।
यह कहानी है कर्नाटक में रहने वाली सालूमरदा थिमक्का की। उनका जन्म तुमकुर जिले के गब्बी गांव में हुआ। वह बेहद गरीब परिवार की बेटी थीं। कभी स्कूल जाने का मौका नहीं मिला। होश संभालते ही मेहनत-मजदूरी करने लगीं। दस साल की उम्र में ही उनकी शादी रामनगर जिले के चिकइया नामक व्यक्ति से कर दी गयी। छोटी उम्र में ब्याहकर ससुराल आ गईं। ससुराल में भी परिवार के पास अपनी खेती-बाड़ी नहीं थी। पति चिकइया दूसरों के खेतों में मजदूरी करते थे। गरीबी और अभाव के बीच भी वह खुश थीं।
थिमक्का ने रामनगर जिले में हुलुकल और कुडूर के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों तरफ करीब चार किलोमीटर की दूरी तक बरगद के 400 पेड़ों समेत 8000 से ज्यादा पेड़ लगाएं हैं और यही वजह है कि उन्हें ‘वृक्ष माता’ की उपाधि मिली है। उन्हें राष्ट्रपति भवन में शनिवार 16 मार्च 2019 को अन्य विजेताओं के साथ पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया। प्रकृति के प्रति उनका लगाव देखते हुए थिमक्का का नाम ‘सालूमरादा’ रख दिया गया। कन्नड़ भाषा में ‘सालूमरदा’ का अर्थ वृक्षों की पंक्ति होता है। अभी उनकी आयु 107 वर्ष है।
कहां से मिली थिमक्का को प्रेरणा
थिमक्का की कहानी धैर्य और दृढ़ संकल्प की कहानी है। उन्हें विवाह के काफी समय बाद भी उन्हें बच्चा नहीं हुआ। जब वह उम्र के चौथे दशक में थीं तो बच्चा न होने के कारण से आत्महत्या करने की सोच रही थीं, लेकिन अपने पति के सहयोग से उन्होंने पौधरोपण में जीवन का संतोष मिलने लगा। इसके बाद थिमक्का ने पीछे मुढ़ कर नहीं देखा और 8000 से ज्यादा पेड़ लगा दिए। उनके इस कार्य के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुकें।
कभी एक सामान्य श्रमिक की तरह काम करने वाली थिमक्का ने अपने एकाकीपन से बचने के लिए बरगद का पेड़ लगाना शुरू किया था। बाद में उनका रूझान बढ़ता ही गया और एक के बाद एक उन्होंने इतने सारे पेड़ लगा दिए। इन वृक्षों को उन्होंने मानसून के समय लगाया था, ताकि इनकी सिंचाई के लिए अधिक परेशानी का सामना न करना पड़े। अब इन पेड़ों की देखभाल कर्नाटक सरकार कर रही है।
सिर्फ नाम ही नहीं, उन्हें अब तक निम्नलिखित सम्मान और पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है-
वर्ष 1995 में उन्हें नेशनल सिटीजन्स अवार्ड दिया गया था। जबकि वर्ष 1997 में उन्हें इन्दिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र अवार्ड और वीरचक्र प्रशस्ति अवार्ड से सम्मानित किया गया था। इस अनोखे तरीके में प्रकृति की सेवा के लिए थिमक्का को वर्ष 2006 में कल्पवल्ली अवार्ड और वर्ष 2010 में गॉडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
उन्हें आध्यात्मिक गुरू रविशंकर द्वारा संचालित आर्ट ऑफ लिविंग व हम्पी युनिवर्सिटी द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है। सालूमरदा थिमक्का के प्रकृति-प्रेम के कारण महामहिम राष्ट्रपति जी के साथ आज उनका चित्र- सोशल मिडिया पर प्रसिद्ध है।
वर्तमान की केन्द्र सरकार के कारण यह पहली बार संभव हुआ कि पद्म श्री पुरस्कार उनके वास्तविक हकदारों को मिल रहा है।