विश्व संवाद केन्द्र, जयपुर द्वारा २६ मई, २०२० (मंगलवार) को google meet app पर सायं ५:०० से ६:३० बजे तक ‘मासिक पुस्तक समीक्षा’ कार्यक्रम में ‘स्वातंत्र्य योद्धा वीर सावरकर: आक्षेप एवं वास्तविकता’ के लेखक श्री अक्षय जोग (पुणे) मुख्यवक्ता रहे । उनके अनुसार:
1) उनकी जीवन यात्रा को चार काल खण्डों में विभक्त कर उन्हें पढ़ना चाहिये ।
2) वीर सावरकर महात्मा गाँधी जैसे समाज सुधारक नहीं अपितु डॉ0 भीमराव अंबेडकर की तरह सामाजिक क्रांतिकारी थे ।
3) सामाजिक समरसता के मूल आठ सिद्धान्तों की रचना की, जिसमें गणेशोत्सव, सह भोज, पतित पावन मन्दिर निर्माण, अस्पृश्यता निवारण, रोटी-बेटी संबंध आदि थे ।
4) समाज के पिछड़े औेर दलित कहे जाने वाले वर्ग को रत्नागिरी जिले के मन्दिर से वेद पाठन व जनेऊ धारण करवाना ।
5) कुशल संगठन निर्माता थे, तभी अभिनव भारत जैसी संस्था का निर्माण हुआ ।
6) कुशल विचारक थे । भारत निर्माण बुद्धिवाद सिद्धांत के आधार को सही मानते थे।
7) पारिवारिक संस्कारों के चलते बड़े भाई गणेश राव सावरकर के साथ सामाजिक क्रांति व भारतीय राष्ट्रवाद के रूप में हिंदू राष्ट्रवाद की स्थापना के पक्षधर थे ।
8) वह मृत्युंजय महापुरुष व दार्शनिक थे । ‘हिंदू कौन’ की सर्व समावेशित परिभाषा की रचना की ।
9) भारत में बहुसंख्यकों का राष्ट्रवाद न होकर भारतीयों का राष्ट्रवाद के सिद्धांत की पालना पर जोर दिया।
10) पड़ोसी राष्ट्र सम्बन्ध, आत्मनिर्भर भारत, सेनाओं का सुदृढ़ीकरण आदि विषयों के स्पष्ट वक्ता व लेखक थे ।
11) हिंदू न्याय, नागरिक अधिकार, राष्ट्रवाद पर ग्रंथ लेखन, महाकाव्य लेखन आदि में अपना योगदान दिया ।
12) अंडमान की जेल में बिना कागज़ कलम के दीवारों पर उन्होंने रचनाओं को जन्म दिया जिसका प्रकाशन भी हुआ ।
13) वीर सावरकर की समाज में दोनों तरह ही छवि है । ऐतिहासिक, सामाजिक, ब्रिटिश शासन के लिये चुनौती वाले दस्तावेज व उनका सद-साहित्य मराठी भाषा में होने के कारण हम सभी वास्तविक जानकारी से वंचित हैं।
14) कुछ मराठी लेखक इन चिन्ताओ के साथ अंग्रेजी में लिखने के लिए आगे आये हैं। उनकी सकारात्मक छवि उजागर हो रही है।
15) उनके जीवन के वत्तान्त को मराठी लेखक श्री धनंजय कीर ने पुस्तकबद्ध किया है। जो पठन योग्य है ।
कार्यक्रम का संचालन श्री मुरारी लाल गुप्ता ने किया । कार्यक्रम में 21 सदस्य उपस्थित रहे। कार्यक्रम के समापन में डॉ प्रीति शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।