राष्ट्र के मूल संस्कारों को आहत करने वाली सामग्री के प्रति सचेत रहा जाए- इंदु शेखर

01f5d1f6-d3eb-4657-9c2a-f557b016f15fशेखावाटी क्षेत्र के प्रथम पुस्तक समागम ‘ज्ञान गंगा पुस्तक मेले’ के दूसरे दिन आज दिनांक 7/4/2019 को सीकर के बद्री विहार में लेखन कार्यशाला का आयोजन हुआ।

मूल रूप से आलेख एवं समाचार लेखन पर आधारित इस कार्यशाला में वार्ताकार के रूप में राजस्थान साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष श्री इंदु शेखर तत्पुरुष रहे। वार्ता के रूप में प्रारंभ इस कार्यशाला का संचालन डॉ गौरव अग्रवाल ने किया। नव लेखकों एवं मीडिया से जुड़े या इच्छुक प्रतिभागियों के मध्य प्रारंभ में लेखन क्या और किस लिए से विषय से प्रारंभ इस सत्र में रचनात्मक लेखन के लिए आवश्यक बिंदु एवं तत्व पर चर्चा करते हुए इंदु शेखर जी ने कहा कि राष्ट्र के मूल संस्कारों को आहत करने वाली सामग्री के प्रति सचेत रहा जाए। लेखन में नवीनता और मौलिकता का आग्रह रहता है परंतु स्रोतों की प्रामाणिकता जाने बिना यूं ही उनका उल्लेख कर देना लेखक की प्रामाणिकता पर प्रश्न उठाता है। आयातित शब्दकिस प्रकार से समाज के सोचने की प्रक्रिया को बदलते हैं और कई बार नुकसान पहुंचाते हैं इसका उदाहरण राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद का संदर्भ देते हुए बताया कि अंग्रेजी के ism का रूपांतर हिंदी में वाद करने के कारण कई बार भ्रम की स्थिति बनती है। भारत में सदैव राष्ट्र एवं राष्ट्रबोध का चिंतन रहा है।

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कार्यशाला के अंतिम सत्र में का योग एक अभ्यास के रूप में समाचार लेखन का पूर्वाभ्यास किया गया।

मेले के द्वितीय सत्र में वैचारिक असहिष्णुता विषय पर मुख्य वार्ताकार प्रसिद्ध लेखक व पैनलिस्ट श्रीशांन्तुन गुप्ता ने अपने विचार रखे तथा तनया गडकरी ने वार्ता का संचालन किया। उन्होंने कहा कि वैचारिक असहिष्णुता शब्द विगत 5 वर्षों में आया।

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पूर्व में पत्रकारों को विशेष प्रकार की सुविधाएं दी जाती थीं, पीएमओ में किस मंत्री को कौन सा विभाग मिलेगा यह पत्रकार ही तय करते थे। इस सिस्टम को भेदना मुश्किल था। पिछले 5 सालों में यह ट्रेंड बदला है।  वर्तमान में सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक चेतना से लोग तर्क देना सीख गए हैं। पूर्व में हमारे पास गलत इंफॉर्मेशन का जवाब नहीं होता था।

आज विचारों की लड़ाई एक नई विधा है जो न्यूज़ टीवी चैनल पर दिखाई देती है यह हमारी संस्कृति को तोड़ने का एक नया षडयंत्र है। असहिष्णुता इसकी वैज्ञानिक तरीके से तैयार की गई लैंग्वेज है।

भारत के संविधान में कानून पहले से भी बने हुए हैं लेकिन उनका इंप्लीमेंट प्रॉपर नहीं हुआ यदि कोई इंप्लीमेंट कर रहा है तो हम उसको गलत दिशा की ओर ले जा रहे हैं। परंतु इस बार हमारी सरकार दबती  नजर नहीं आ रही है।

पहले की अधिकांश पुस्तकें और साहित्य वामपंथी विचारधारा द्वारा लिखा हुआ है। उन्होंने एक बेचारेपन की तरह हमारे समाज को दर्शाया है। हमें व हमारे समाज को अपरिष्कृत बताया है।

आज हमें उनके सामने तर्क रखने होंगे। भारत के विरोध में बोलने वालों को जवाब देने होंगे। हमें चाहिए हम स्वयं पत्रकार बनें और सभ्य भाषा में तर्क करें। आज सोशल मीडिया टि्वटर फेसबुक आदि के माध्यम से अपनी बात कहें व गलत बातों का संयमित शब्दों में विरोध करें ।

आज वही लोग वैचारिक असहिष्णुता की बात कर रहे हैं जिनकी दाल नहीं गल रही है।

 ज्ञान गंगा पुस्तक मेले के तीसरे सत्र में ‘कौन है अर्बन नक्सल’ पुस्तक परिचर्चा में वार्ताकार श्री विपिन चंद्र, श्री इंदु शेखर तत्पुरुष व शीला रॉय उपस्थित रहे। वार्ता का संचालन पत्रकार श्री विवेकानंद ने किया ।

अमेरिका की न्यूज़ एजेंसी के अनुसार आई एस आई और तालिबान के बाद लाखों निर्दोष लोगों की किसी ने जान ली है तो वह है नक्सलवाद। राष्ट्र को तोड़ने के लिए अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं।

शीला राय ने कहा अर्बन नक्सलियों में तथाकथित बुद्धिजीवी विद्यार्थी, पत्रकार आदि शामिल हैं जो राज्य का खंडन करने का कार्य कर रहे हैं। वे हमारे ज्ञान केंद्रों, संस्कृति व साहित्य पर प्रहार कर रहे हैं। समाज, शिक्षकों व विद्यार्थियों द्वारा देश विरोध कराना इनका मुख्य उद्देश्य है। इन्होंने चाइना युद्ध में चाइना का सपोर्ट किया। पहले भारत की परिवार व्यवस्था पर हमला किया। मीडिया के माध्यम से धार्मिकता के आधार पर तोड़ा। शिक्षा में विभेदकारी तंत्र लाकर दिग्भ्रमित शिक्षण सामग्री पोषित की और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए समाज को भ्रम में डालने का प्रयास उत्पन्न किया ।

एक जानकारी के अनुसार काफी वर्षों पूर्व सोवियत संघ का साहित्य जो साम्यवाद से पोषित था का साहित्य बहुत सस्ते दामों में भारत में बांटा तथा उसके बारे में बताया कि हम वहां पर कितने खुश हैं कि हमने साम्यवाद अपनाया ।
1967 के बाद साम्यवाद नक्सलवाद बन गया और 1970के दशक में चाइना में मिलियनस लोगों की मौत इस नक्सलवाद के कारण हो गई ।

नक्सलवादी समाज में धार्मिक आर्थिक अधिकार मिलें इसके लिए सड़कों को तोड़ते हैं, स्कूलों में विस्फोट करवाते हैं, बच्चों को मारते हैं, आमजन को मारते हैं ,राज्य की सत्ता के विरुद्ध षड्यंत्र करते हैं।
ये महिला अधिकारों की बात करते हैं लेकिन इनके पोलितब्यूरो में महिलाओं की संख्या नगण्य है और बाद में उनका शोषण करते हैं।

वर्तमान में उड़ीसा झारखंड आंध्र प्रदेश में यदि कोई घटना होती है, तो उसकी खबर दिल्ली से लिखी जाती है । इसका मतलब यह है कि खबर उच्च क्षेत्र से निम्न क्षेत्र की ओर आ रही है अर्थात इनके आका लोग इस काम को अंजाम दे रहे हैं। यह अर्बन आतंकवाद है। 2004 से सीपीआईएम ने अर्बन पर्सनलटी नाम से एक पत्र निकाला था ,जिसके माध्यम से विद्यार्थी वर्ग मध्यम वर्ग पत्रकार वर्ग आदि को दिग्भ्रमित किया तथा इसे हिंदू फासीवादी ताकतों का विरोध करना कहा गया। धार्मिक अल्पसंख्यकों का सहयोग लेकर इन्होंने इन कार्यों को अंजाम देना चाहा।

कांग्रेस की सत्ता के कंधे पर बैठ कर वामपंथियों ने देश के सभी बोद्धिक पदों पर कब्जा जमा लिया, पहले इन्होंने शैक्षणिक संस्थानों पर कब्जा कायम किया उसके बाद में समाज पर इन्होंने कब्जा कायम किया। लेकिन अब वर्तमान में हमारा समाज इनकी बातों को चुपचाप नही सुनता है। अब समाज सशक्त हो गया है, लोग विरोध करने लगे हैं, बोलने लगे हैं, ये इसको असहिष्णुता का नाम दे रहे हैं ।

इस पुस्तक परिचर्चा में अनेक लोगों ने भाग लिया। पुस्तक में अर्बन नक्सलवाद पर विश्लेषणात्मक लेखन किया गया है।

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