श्रद्धा कभी खंडित नहीं होनी चाहिए – डॉ. मोहन भागवत जी

विसंके जयपुर । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक है कि वह अपनी श्रद्धा पर दृढ़ रहे। भक्त प्रह्लाद को विश्वास था कि कण कण में भगवान का निवास है। लाख प्रलोभनों और धमकियों के बावजूद वह अपने विश्वास पर कायम रहे और खंभे से भगवान प्रगटित हुए। सरसंघचालक जी स्वामी रामानुजाचार्य के 1000 वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे।

आरा के चंदवा में आयोजित सहस्राब्दी यज्ञ के विश्व धर्म सम्मेलन को संबोधित करते हुए डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि रामानुजाचार्य जी ने सबके लिए भक्ति और साधना का द्वार खोल दिया। उन्होंने मंदिर के बुर्ज पर चढ़कर सबको गूढ़ मंत्र सहजता से बता दिया। विजयेंद्र गुरु से सबने जब शिकायत की तो गुरु नाराज हुए। नरक में जाने तक की बात कही। लेकिन रामानुजाचार्य ने सहजता से कहा कि यदि एक व्यक्ति की गलती से हजारों लोगों को मुक्ति मिलती है तो वे यह गलती बार-बार करने को तैयार है। गुरु भक्त उपमन्यु की चर्चा करते हुए कहा कि सबने उपमन्यु का उपहास किया, लेकिन उपमन्यु की आस्था दृढ़ थी और आज उपमन्यु का नाम श्रद्धा से लिया जाता है। मुस्लिम आक्रांता ने मंदिर तोड़ा। लेकिन उसकी बेटी देवता के विग्रह पर इतनी आसक्त हुई कि उसने विग्रह को ही अपना सब कुछ बना लिया। स्वामी रामानुजाचार्य ने इस मुस्लिम बाला कनम्मा की समाधि दक्षिण भारत में बनवाई। उन्होंने वर्तमान समय की चर्चा करते हुए कहा कि हमको काल बाह्य विचार छोड़ना चाहिए। हिन्दू समाज में कोई अछूत नहीं है। रूढ़ियों को बदलने में कोई संकोच नहीं करना चाहिये, श्रद्धा से हर चीज संभव है। मुझे संदेश नहीं देना है, संदेश तो सनातन परंपरा का है। उस परंपरा के संदेश का स्मरण करने और उसके अनुसार आचरण करने से ही समाज और देश का भला संभव है। परिस्थितियां बदल सकती हैं, कभी अनुकूल हो सकती हैं, कभी प्रतिकूल हो सकती हैं, लेकिन श्रद्धा रखकर कार्य करने से हमेशा भला ही होता है। अपनी आस्था पर दृढ़ रहना चाहिए। सरसंघचालक जी ने आरा के संघ कार्यालय भवन निर्माण के लिये भूमि पूजन भी किया।

आभार विसंके आरा

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स्वामी रामानुजाचार्य के 1000 वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में  सरसंघचालक जी

स्वामी रामानुजाचार्य के 1000 वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में सरसंघचालक जी

 

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