संकटों का सामना करते हुए, तत्व को छोड़े बिना कठिन मार्ग पर चलना, यही कार्यकर्त्ता की परीक्षा – डॉ. मोहन भागवत जी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि कार्य का मूल्य, मानवता को ध्यान में रखते हुए मनुष्य को जोड़ना, यह बात दत्ताजी से सीखें. लोकसंग्रह कैसा किया जाए, यह उनसे सीखना होगा. सरसंघचालक डॉ. मोहन भगवत जी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के संस्थापक सदस्य दत्ताजी डीडोलकर के जीवन पर आधारित ‘आधारवड’ पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद तथा विद्या निधि के संयुक्त तत्वाधान में राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस के उपलक्ष्य में 07 जुलाई को नागपुर में “प्रेरणा विद्यार्थी सम्मलेन” आयोजित किया गया था. डॉ. वसंतराव देशपांडे सभागृह में आयोजित कार्यक्रम में केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी जी, विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुनील आंबेकर जी सहित अन्य उपस्थित थे. कार्यक्रम में स्व. दत्ताजी के जीवन पर आधारित पुस्तक “आधारवड” का लोकार्पण गणमान्य अतिथियों ने किया.

सरसंघचालक जी ने कहा कि व्यक्ति निर्माण यह संघ और विद्यार्थी परिषद् का काम है. इसलिये जीवन का ताना बाना कैसा बुनना चाहिये, यह महत्वपूर्ण है. केवल नारों से, कुछ क्षणिक उत्साह से काम नहीं चलेगा. अपितु खुद तपकर, अनेक कठिन प्रसंग का आघात सहन कर और वेदनाओं को संजोकर उससे सोने जैसा बनकर उत्पन्न हुई मधुरता, तेजस्विता और संस्कारों का वितरण दूसरों के लिए करते रहना चाहिये, ऐसा जीवन कार्यकर्त्ता का होना चाहिये. वास्तविक रूप से यह आसान नहीं है, कठिन है. ऐसा करते समय, संकटों का सामना करते समय, स्वयं को संतुलित बनाए रखना, लेकिन तत्व को छोड़े बिना कठिन मार्ग पर चलना, यही कार्यकर्त्ता के जीवन की परीक्षा रहती है. उसमें आगे चलकर सफलता भी मिलती है, यश कीर्ति भी मिलती है. उसी समय कार्यकर्त्ता को यह भी सहजता से संतुलित रूप से धारण करना आना चाहिये, उसको हजम करना भी आवश्यक है. समर्थ रामदास स्वामी जी ने कहा है – “मनी एकांत सेवावा” अर्थात् मन को एकांत धारण करना सिखाना होगा.

उन्होंने कहा कि कन्याकुमारी स्थित स्वामी विवेकानंद स्मारक निर्माण के समय दत्ताजी ने अपूर्व धैर्य का परिचय दिया. वहां पर स्मारक की जगह पर किसी ने क्रॉस लगाकर शिला स्मारक को ही चुनौती दी थी. स्व. दत्ताजी ने अभूतपूर्व साहस का परिचय देकर वह जगह सुरक्षित की और शिला स्मारक का काम सुचारू रूप से चला. आज के युवाओं के सामने देश के लिये कुछ कर गुजरने की इच्छा होती है. इस समय कुछ प्रेरक प्रेरणा पुरुष सामने आते हैं. केवल उनकी जयंती, पुण्यतिथि मनाने से नहीं होगा. देश के लिये किये उनके त्याग, तपस्या को याद करना पड़ेगा. उन्होंने किस प्रतिकूल परिस्थिति का सामना किया होगा, कितनी उपेक्षाएं झेली होंगी, कष्ट सहन किये होंगे, इन बातों का स्मरण हमें करना होगा. उनके जैसी क्षमता हमारे अन्दर भी आनी चाहिये, ऐसा प्रयास हमें करना पड़ेगा. देश को एक सूत्र में बांधने का काम उन्होंने किया. संघ भी आत्मीयता से वही कार्य कर रहा है.

गत मास पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणव मुखर्जी नागपुर में तृतीय वर्ष के समापन समारोह में विशेष अतिथि के रूप में संघ के मंच पर आए, और कुछ विवाद हुआ. इस पर सरसंघचालक जी ने कहा कि ‘पहले वो किसी राजनीतिक पार्टी से संबंधित थे, बाद में वे राष्ट्रपति बने और सारे देश के हो गए. संघ ने उसी आत्मीयता से उन्हें बुलाया और बड़ी सहजता से वे हमारे यहाँ पधारे. संकोच का भाव ना हमारे मन में था, न उनके मन में.

केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी जी ने भी विद्यार्थी परिषद् और दत्ताजी के संबंधों पर अपने अनुभव का प्रगटीकरण किया. उनके भाषण में उस समय के संघर्षों और उस दौरान आई कठिनाईयों, और दत्ताजी का मार्गदर्शन प्रत्यक्ष आर्थिक मदद्, के संस्मरण रोचक रहे.

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