हिन्दू आध्यात्म एवं सेवा संगम विचार एक आंदोलन: गुरुमूर्ति

s.gurumoortiउदयपुर,21 मार्च । प्रख्यात चिंतक एवं खोजी पत्रकार के रूप में अपनी पहिचान बनाने वाले चार्टर्ड अकाउन्टेंट एस. गुरुमूर्ति ने कहा कि हिन्दू आध्यात्म एवं सेवा संगम एक विचार है जो आंदोलन का रूप ले रहा है। इसी के तहत इस वर्ष 10 से 13 नवम्बर तक बीएन कॉलेज परिसर में आठवें संगम का आयोजन होगा। वे हिन्दू आध्यात्म एवं सेवा संगम के बैनर तले नगर निगम के नवनिर्मित ऑडिटोरियम में आयोजित कार्यक्रम को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। द्वितीय सत्र में शाम को उद्योगपति एवं प्रबुद्धजन संगोष्ठी का आयोजन भी हुआ जिसमें मुख्य अतिथि पेस्टीसाइड्स के सलिल सिंघल थे। अध्यक्षता यूसीसीआई के अध्यक्ष वीपी राठी ने की। विशिष्ट अतिथि प्रो. बीपी शर्मा, सहकार भारती के प्रदेशाध्यक्ष मुकेश मोदी थे।
प्रथम सत्र में एस.गुरुमूर्ति ने कहा कि समाज और राष्ट्र का निर्माण वैश्विक परिदृश्य के मद्देनजर करना है। इसका गठन इसी उद्देश्य को लेकर किया गया है। इसके प्रमुख छह स्तम्भ पर्यावरण संरक्षण, वन संरक्षण, गौ रक्षा, राष्ट्रीयता को बढ़ावा, महिलाओं का सम्मान पारिवारिक और मानवीय मूल्यों की संरक्षा हैं।जब चेन्नई में हमने कार्य आरंभ किया तो करीब 30 धार्मिक और आध्यात्मिक संगठन हमारे साथ थे जिनकी संख्या अब 300 पार कर चुकी है। अपने भारतीय मूल्यों को ग्लोबल लेवल पर लाना होगा। बहुत सारे फाउण्डेशन कार्य कर रहे हैं। सभी अपने अपने स्तर पर अच्छे काम कर रहे हैं जिनके कार्यों को सरकारें तक नहीं कर पातीं। हिन्दू शब्द जुड़ा देखकर कई संगठनों ने हमें पहले मना किया लेकिन बाद में सेवा कार्य देखकर अब वे हमसे जुड़ गए।
गुरुमूर्ति ने कहा कि प्री-संगम के तहत कन्या वंदन एवं सुवासिनी वंदन, मातृ-पितृ वंदन, आचार्य वंदन, गाय, हाथी और तुलसी की पूजा, भारत माता वंदना एवं परमवीर चक्र विजेताओं व देश के शहीदों की वंदना, पारंपरिक खेलकूद आदि आयोजन होते हैं। पारंपरिक खेलों से भी स्वत: व्यायाम हो जाता है। हमारा उद्देश्य स्कूल-कॉलेजों को केन्द्र में रखकर कार्यक्रम का आयोजन करना है क्योंकि दस वर्ष बाद यही देश का भविष्य हैं। संस्कार निर्माण का कार्य स्कूलों से ही किया जाता है।
उन्होंने बताया कि हमारा पहला संगम चेन्नई में वर्ष 2009 में हुआ था। उसके बाद हाल ही में जयपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोग से सातवां संगम हुआ जिसमें 40 हजार छात्र-छात्राओं ने शिरकत की। 120 सितार वादकों ने वंदेमातरम की धुन बजाई। इसमें 173 संगठनों ने अपने द्वारा किए जा रहे सेवा कार्यों का प्रदर्शन किया। इनमें 42 संगठन धार्मिक एवं 131 संगठन सामाजिक क्षेत्रों से जुड़े थे। करीब दो लाख लोगों ने संगम को देखा और 45 हजार तुलसी के पौधे निशुल्क वितरित किए गए। चेरिटी करने में हमारे देश के लोग अग्रणी हैं। वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार 8 प्रतिशत अमेरिकन चेरिटी करते हैं जबकि हमारे यहां 40 प्रतिशत लोग चेरिटी में विश्वास रखते हैं।
विशिष्ट अतिथि आईएमसीटी की संस्थापक चेयरमैन राजलक्ष्मी रविकृष्णन ने कहा कि हमने जब इस कार्यक्रम को आरंभ किया तो यकायक किसी को विश्वास नहीं हुआ। सरकारी स्कूलों के क्षेत्रीय भाषा के अध्यापकों का आचार्य वंदन किया गया तो उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े कि ऐसा भी होता है। पानी बचाने के लिए गंगा वंदन किया गया। कन्या वंदन का कार्यक्रम हुआ तो 60 कन्याओं का वंदन किया गया। अगले ही दिन क्रिश्चियन और मुस्लिम अभिभावक आए कि आप हमारी बालिकाओं को कैसे इग्नोर कर सकते हैं। वे भी धार्मिक हैं। इस तरह अगले हफ्ते वापस 300 बालिकाओं का वंदन कराया गया। मातृ-पितृ वंदना का नतीजा यह निकला कि कई पिताओं ने इसके बाद शराब हमेशा के लिए छोड़ दी।
अध्यक्षता करते हुए एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. उमाशंकर शर्मा ने कहा कि हम तो उस राजस्थान के वासी हैं जहां पेड़ों को बचाने के लिए खेतड़ी में इमरतीदेवी सहित 372 लोगों के बलिदान दिया। उसे कौन भूल सकता है? रिसर्च स्टडी है कि हिन्दू संस्कृति के माध्यम से ही वनोपज को बचाया जा सकता है।
विशिष्ट अतिथि कोटा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. परमेन्द्र दशोरा ने कहा कि आज यहां जो कुछ भी सुनने को मिला, वह जानकारी नहीं बल्कि प्रेरणा है। यह सिर्फ कोई मेला नहीं बल्कि भारतीय मन को आंदोलित करने वाला आंदोलन है। काबिले तारीफ इसलिए कि भारतीय संस्कृति का इससे प्रचार-प्रसार हो रहा है। यदि हम तर्क और मन से सहमत हैं तो हमें उसके साथ लग जाना चाहिए। चंदा नहीं लेने के लिए जहां संगम कमिटेड है तो वहीं इतना सामथ्र्य पैदा करना है कि आगे चलकर कॉर्पोरेट का कमिटमेंट आ जाए। आने वाले समय में निश्चय ही यह आंदोलन भारतीय संस्कृति का प्रवक्ता बनकर खड़ा होगा। उदयपुर में होने वाले हिन्दू आध्यात्म एवं सेवा संगम के संयोजक वीरेन्द्र डांगी को बनाया गया है। कार्यक्रम में जयपुर के सोमकांत, गुणवंत कोठारी आदि ने भी विचार व्यक्त किए। वसुधा का कल्याण न भूलें… शीर्षक से शिक्षिका कादम्बरी ने गीतिका प्रस्तुत की। सत्यप्रकाश मूंदड़ा ने अतिथि परिचय दिया। आलोक संस्थान के निदेशक डॉ. प्रदीप कुमावत ने अतिथियों का सम्मान किया।

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