नई दिल्ली, “राष्ट्र सेविका समिति” ने मंथन के नाम से प्रबुद्ध वर्ग के बीच गोष्ठियां आयोजित करना प्रारम्भ किया है. ऐसी ही एक गोष्ठी दिल्ली प्रांत के मेधाविनी मंडल ने शिक्षक के राष्ट्रीय दायित्व विषय पर यहां 27 जनवरी को आयोजित की. इस गोष्ठी में सभी वक्ताओं ने समान आकांक्षा व्यक्त की कि शिक्षक ऐसे छात्रों का निर्माण करें जो राष्ट्र के अनन्य उपासक सिद्ध हों. उनके जीवन में राष्ट्र सर्वोपरि हो. अखिल भारतीय सह कार्यवाहिका श्रीमती आशा शर्मा जी ने चाणक्य को शिक्षकों के लिये आदर्शतम व्यक्तित्व निरूपित किया. अपने उद्घाटन भाषण में आशा जी ने कहा कि शिक्षकों की भूमिका महान आचार्य चाणक्य जैसी होनी चाहिये जो कि समय के अनुरूप देश का नेतृत्व कर सकें और व्यक्ति व राष्ट्र को उत्थान की ओर ले जा सकें.
उन्होंने कहा कि संगठन की संस्थपिका वंदनीया मौसी जी (लक्ष्मीबाई केलकर) कहती थीं कि समाज का 50 प्रतिशत अंश महिलायें हैं. उनके बेटे संघ शाखा से संस्कार ग्रहण करते थे तो उनको लगता था कि महिला शक्ति भी अपने राष्ट्र का चिंतन करे, नेतृत्व करे, देश के विकास में अपना सम्पूर्ण योगदान दे. इसी प्रेरणा से हिन्दू महिला शक्ति के जागरण हेतु 1936 में “राष्ट्र सेविका समिति” की स्थापना की गई. साथ ही, संकल्प किया गया कि समाज के हर क्षेत्र में नेतृत्व देने की क्षमताओं का विकास किया जाये और उनको संगठित भी किया जाये.
उन्होंने बताया कि राष्ट्र सेविका समिति का कार्य भारत के अलावा 40 देशों में भी चल रहा है. देश में 1028 सेवा प्रकल्प संचालित किये जा रहे हैं, जिनमें परिवार-विहीन, वनवासी क्षेत्र, आतंकग्रस्त क्षे़त्र की बालिकाओं के लिये 40 छात्रावास स्थापित किए गये हैं. इसके अतिरिक्त सिन्धु सृजन नाम से दिल्ली में और दिशा नाम से दक्षिण में छात्राओं के बीच कार्य प्रारम्भ किया गया है. ए. एस. ट्रेनिंग, नि:शुल्क ट्यूशन केन्द्र और वैदिक गणित विषयों से संबन्धित प्रकल्प भी शुरू किए गये हैं.
अध्यक्षता करते हुए साध्वी ऋतम्भरा जी ने कहा कि आजकल जो शिक्षार्थी प्रथम आते हैं, उनकी तरफ ही ध्यान दिया जाता है और अन्तिम पंक्ति वालों को छोड़ दिया जाता है. शिक्षक यदि चाहें तो अपनी व्यवहार शालीनता एवं कड़े परिश्रम से उन्हें भी अगली पंक्ति में ला सकते हैं. न्होंने यह भी कहा कि शिक्षक यदि जीवन-पर्यन्त शिक्षक के साथ शिक्षार्थी भी बना रहे तो वह एक उच्च राष्ट्र निर्माता हो सकता है.
उन्होंने कहा, “आज हमें ऐसे सेवा एवं संस्कारों का अग्नि कुंड बनाने की आवश्यकता है जिसमें जलने वाली लकड़ी (शिक्षार्थी) प्रत्येक देश सेवा रूपी यज्ञ में जल कर भस्म बने.