विसर्जन पर रोक को लेकर हाईकोर्ट ने सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई

कोलकाता. बंगाल सरकार का तथाकथित सेक्युलर चेहरा एक बार फिर सामने आया है. लेकिन न्यायालय ने बंगाल सरकार को लताड़ लगाई है. बंगाल के गौरव के रूप में स्थापित दुर्गा पूजा को लेकर राज्य सरकार द्वारा तुष्टिकरण की राजनीति पर करारा प्रहार करते हुए कोलकत्ता हाईकोर्ट ने सरकार को आइना दिखाया.दरअसल दशमी के दिन ही मुहर्रम का त्यौहार है. इस दिन शाम को मुस्लिम समुदाय ताजिया निकालता है. इसे देखते हुये कोलकत्ता पुलिस ने एक सर्कुलेशन जारी करते हुये कहा था कि दशमी के दिन शाम 4 बजे के बाद मूर्ति विसर्जन नहीं किया जाएगा. पुलिस की नोटिफिकेशन को चुनौती देते हुये हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गयी थी, जिस पर वीरवार को न्यायाधीश दीपंकर दत्ता की अदालत में सुनवायी हुई. इस दौरान राज्य सरकार के वकील अभ्रतोष मजुमदार को फटकार लगाते हुए पूछा कि किस आधार पर सरकार ने दशमी के दिन पूजा विसर्जन पर रोक लगायी है. आखिर तजिया को सुबह निकालने का निर्देश क्यों नहीं दिया जाता. मुहर्रम के कारण विसर्जन नहीं हो का क्या मतलब है. न्यायाधीश के तीखे सवालों से निरुत्तर वकील ने कहा कि सरकार के पास शांति सुनिश्‍चित करने के लिए यही विकल्प बचा है. न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि अगर सरकार लोगों के आयोजनों को समान्य तरीके से सम्पन्न करवाने के बजाय उन पर रोक लगायेगी तो उसे सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है. इलाहाबाद का उदाहरण देते हुये न्यायाधीश ने कहा कि भारत का सबसे बड़ा ताजिया इलाहाबाद में निकाला जाता है. वहां दशहरा को लेकर ताजिये को एक दिन बाद निकाला जाता है. बंगाल में दुर्गापूजा का इतना महत्व है, फिर भी यहां सरकार का ऐसा रवैया चौंकाने वाला है. इसके बाद न्यायाधीश ने साफ किया कि दशमी के दिन के लिए पुलिस ने जो निर्देशिका दी है, वह मान्य नहीं होगी. इस दिन रात तक लोग आराम से विसर्जन कर सकते हैं और पुलिस को सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करना होगा.

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