अनुकूलता लक्ष्य साधन में सहायक तो हो सकती है, पर लक्ष्य की प्राप्ति अपनी कार्यपद्धति से ही – डॉ. मोहन भागवत जी

होशियारपुर. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने 20 नवम्बर को सायं 6 बजे पूर्ण गणवेश में एक हजार से अधिक स्वयंसेवकों को संबोधित किया. उन्होंनेpb-1-300x252 स्वयंसेवको को अनुकूल परिस्थितियों के खतरों के प्रति आगाह किया. सरसंघचालक जी ने कहा कि अपने जन्म से ही उपेक्षा और विरोध झेलते आ रहे संघ के लिए अब अनुकूल परिस्थितियां बनती दिखाई दे रही हैं. संघ कार्य बढ़ रहा है, संघ की स्वीकार्यता बढ़ रही है, विरोधी भी ऊपर से संघ का विरोध तो करते हैं. परंतु वास्तविकता में संघ को प्रमाणिक मानते हैं और उसके प्रशंसक हैं. अपनी कार्यपद्धति के बल पर संघ अपनी उपेक्षा व विरोध की बाधाओं को तो सफलतापूर्वक पार पा गया, परंतु अब उसे अनुकूलता के खतरों के प्रति सचेत रहना होगा.

उन्होंने एक किसान की कथा सुनाई – जिसके खेत में हर रात इंद्र का एरावत स्वर्गलोक से उतर कर फसल खा जाता था. एक दिन रात को छिप कर बैठे किसान व उसके साथियों ने एरावत को फसल खाते हुए पूंछ से पकड़ लिया. एरावत आकाश की ओर उड़ चला और किसान व उसके साथी मालबद्ध हो कर पूंछ पकड़े उसके पीछे-पीछे. पूंछ छुड़वाने के लिए एरावत जितना भी उलटा-पुलटा हो, झटके देता उसका असर उलटा होता. किसान की पूंछ पर पकड़ और मजबूत हो जाती. एरावत ने फिर एक चाल चली. उसने किसान को कहा चलो मैं तुम्हें अपने मालिक के पास ले चलता हूं. वह तुम्हें फसल के बदले में बहुत सा धन देंगे. तुम्हारा स्वर्ग में खूब आदर सत्कार होगा, तुम्हें पद-प्रतिष्ठा सब कुछ मिलेगा. चिकनी चुपड़ी बातों से किसान का मन बदल गया. एरावत ने अपना अभियान जारी रखा और किसान की प्रशंसा करते हुए कहा कि तुम्हारी फसल स्वर्गलोक में पैदा होने वाली फसलों से भी उत्तम है. इस बीच एरावत ने पूछा कि तु्म्हारे खेत में कितनी फसल होती है. किसान ने बताया पचास मन. एरावत ने कहा कि पृथ्वीलोक का नाप-तोल हम स्वर्गलोक वासी नहीं जानते, हमें इस तरह बताओ कि समझ आ सके. इसके लिए किसान ने अपने दोनों हाथ फैला दिए और हाथ से पूंछ छुटते ही साथियों समेत धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा. जिस तरह किसान हाथी का विरोध, उसके लटके-झटके तो बर्दाश्त कर गया, परंतु अनुकूल परिस्थिति, मान, प्रतिष्ठा, पद, धन के लालच ने उसे धरती पर पटक दिया. संघ के स्वयंसेवकों को इन प्रलोभनों से बचना है और अपना ध्यान लक्ष्य पर केंद्रित रखना है.

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि पूरी दुनिया में एक संगठन के नाते जितनी उपेक्षा, उपहास व विरोध का सामना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को करना पड़ा है. उतना शायद ही किसी संगठन को करना पड़ा हो. लेकिन शुद्ध सात्विक प्रेम, व्यक्ति से व्यक्ति संपर्क, निस्वार्थ भावना के गुणों से लैस हो, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, लोकप्रियता आदि क्षुद्र भावनाओं से विरक्त हो, देशसेवा करने की स्वयंसेवकों की कार्यपद्धति के बल पर संघ आज इस मुकाम पर पहुंचा है कि आज उसके अनुकूल परिस्थितियां बनती दिखाई दे रही हैं. जिस कार्यपद्धति से स्वयंसेवकों ने उपेक्षा, उपहास व विरोध की स्थितियों पर पार पाया. उसी के चलते अनुकूलता के खतरों से निपटना होगा. यह अनुकूलता हमारे लक्ष्य साधन में सहायक तो हो सकती है, परंतु लक्ष्य की प्राप्ति अपनी कार्यपद्धति से ही होगी.

हमें बड़ा काम करना है, समाज में संगठन नहीं बनाना, बल्कि समाज का संगठन करके देश का उत्कर्ष करना है. केवल महापुरुषों, किसी खास विचारधारा, खास संगठन के बल पर भी यह संभव नहीं है, हां यह सभी इसमें सहायक हो सकते हैं. यह काम ठेके पर नहीं दिया जा सकता, इसमें सभी को लगना होगा. हमें एकता बाहर से लाने की जरूत नहीं, बल्कि भारत प्राचीन समय से ही विविधता में एकता का प्रतीक रहा है.

दूसरा मेरे जैसा हो तो ही एक हो सकते हैं या जब तक स्वार्थ न हो तो एक नहीं हो सकते. लेकिन भारत ऐसा नहीं सोचता, हम मानते हैं कि एकता एकरूपता से नहीं बल्कि आत्मीयता, प्रेम व समरसता से आ सकती है. तेरा विश्वास तुझे मुबारक, मेरा विश्वास मुझे, तुम्हारा मार्ग भी वहीं जाता है, जहां मेरा रास्ता जाता है. हम दोनों में कोई भेद नहीं, मार्ग की विविधता हो सकती है. यह गुण बढ़ते-बढ़ते सारा विश्व एक हो जाए, तुम विश्व के हो जाओ और विश्व तुम्हारा हो जाए. मेरा जीवन स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए है. इतिहास से भी अज्ञात समय से चले आ रहे इन विचारों को मानने वाले लोगों के हम वंशज हैं. हमें इन्हीं गौरवशाली संस्कृति व मंगलकारी विचारों का गौरव करने वाले लोगों का संगठन करना है. हमने स्वयं प्रेरणा से भारत माता की सेवा करने का व्रत धारा है, हमें आशा-निराशा, मान-अपमान के विवादों में नहीं पडऩा है.

संघ ने भारत पर कोई उपकार नहीं किया, बल्कि भारतपुत्र भारत माता के प्रति उपकृत हैं. हमें ऋण चुकाने का अवसर मिला, यही हमारा सौभाग्य है. हमें केवल सेवा का अधिकार प्राप्त है, हमें पद, मान, प्रतिष्ठा, लाभ कुछ नहीं चाहिए. स्वयंसेवक को एक ही चिंता होनी चाहिए, अपना समाज और अपनी संस्कृति. हमें इसी ध्येय के लिए काम करना है, न कि व्यक्ति विशेष के लिए. लाभ नहीं, पद नहीं, धन्यवाद नहीं प्रतिकूलता में जो डिगता नहीं और अनुकूलता में जो भूलता नहीं, वही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है. समाज के सभी लोग गणवेश नहीं डालेंगे, परंतु जब उनमें इन गुणों का समावेश होगा, तभी देश का उत्कर्ष होगा. हमें बिना भूले अपने इस कार्य को करते रहना होगा. इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तर क्षेत्र संघचालक बजरंग लाल गुप्त जी, जिला संघचालक अशोक चोपड़ा जी उपस्थित थे.

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