विश्व संवाद केन्द्र। हसरत कब जिद में बदल गई उसे भी भान न हुआ। वह पढ़ाई में डूबती गई और किताबों में खोती गई। कक्षा दर कक्षा अव्वल आती रही और सपने बुनती रही। पहाड़ की इस बेटी ने एक दिन केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसफ) में कमांडो बनकर चैंका दिया। हालांकि समाज ने उसके पैरों में बेडि़यां डालने की कोशिश की, लेकिन वह कहां रुकने वाली थी। वह तो परवाज भर चुकी थी।
पिछले करीब दस वर्षों से सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्यूरिटी फोर्स (सीआईएसएफ ) की एयरपोर्ट विंग में कार्यरत शशि राणा मोहंती का जन्म 30 दिसंबर 1982 को उत्तरकाशी जिले के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। पिता लाल सिंह राणा सरकारी कर्मचारी थे और मां विद्या राणा गृहिणी थी। एक भाई और तीन बहनों में शशि तीसरे नंबर की हैं। शशि बताती हैं कि वह बचपन से ही कुछ बनना चाहती थीं। क्या बनना है यह नहीं मालूम था, लेकिन यह जरूर सोचती थी कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे माता-पिता को खुशी मिले, वे गर्व करें और खुद की जिंदगी खुशहाल हो सके। इसी चाहत में पढ़ाई की धुन सवार हो गई। लगा कि यही वह रास्ता है जो मंजिल तक पहुंचा सकता है। फिर क्या था, किताबों में ऐसी खोई कि मां को चिंता होने लगी। वह मुझे पढ़ते देखती तो कहती कि खाना बनाना सीख ले। शादी के बाद यही काम आएगा। मैं मां को कुछ जवाब न देती, लेकिन पढ़ने की जिद और बढ़ जाती। मन ही मन कहती कि देखना एक दिन यह पढ़ाई ही मेरे काम आएगी।
शशि के माता-पिता को आज उन पर नाज है। वे कहते हैं कि उसने जो भी हासिल किया अपने दम पर किया है। शशि ने दसवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। उसके बाद 12वीं में लड़कियों के लिए कठिन माने जाने वाले गणित और विज्ञान विषय को चुना। इस परीक्षा को भी उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। इसके बाद पढ़ाई के लिए वह देहरादून आ गईं। डीबीएस कालेज में दाखिला लिया और बीएसी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसी बीच रिश्तेदार और समाज के लोग पिता पर शशि की शादी के लिए कहने लगे। दबाव में आकर पिता ने शशि से विवाह करने के लिए कहा, लेकिन शशि ने मना कर दिया। कहा कि मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना है। उसके बाद ही शादी करेगी। इसी बीच शशि ने सीआईएसएफ में इंस्पेक्टर पद की परीक्षा पास कर ली। वर्ष 2003 में उनकी नौकरी लग गई। इसकी जानकारी जब लोगों को हुई तो उन्होंने कहा कि बेटी को फौज में भेजना ठीक नहीं है, फौज में तो लड़के जाते हैं। यदि बेटी फौज में गई तो उसकी शादी नहीं होगी। इसके बाद माता-पिता ने भी शशि पर नौकरी नहीं करने का दबाव बनाया। इस पर शशि ने अपने माता पिता को समझाया कि जमाना बदल गया है। लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से कम नहीं हैं। वह अपने पैरों पर खड़ी होगी तो शादी अपने आप हो जाएगी। बहुत समझाने के बाद उसके माता-पिता नौकरी के लिए राजी हुए। शशि को एक साल का बेटा है। शशि के पति ललतेंदु मोहंती भी सीआईएसफ में असिस्टेंट कमांडेंट हैं। शशि बताती हैं कि पहले उनके माता-पिता ने उन्हें पूरा सहयोग दिया। उनके प्रोत्साहन से ही मैं यहां तक पहुंच सकी। अब पति भी पूरा साथ देते हैं।
शशि बताती हैं कि ट्रेनिंग के दौरान उसे चोट लग गई थी। वह कई दिनों तक वह अस्पताल में भर्ती रही, लेकिन इसकी जानकारी उसने अपने माता-पिता को नहीं दी। कहती हैं कि उन्हें डर था कि यदि माता-पिता को उसके चोटिल होने के बारे में जानकारी हो जाएगी तो वह उसे वापस बुला लेंगे। एक वर्ष की कठिन ट्रेनिंग के बाद शशि का चयन सीआईएसएफ में कमांडो ट्रेनिंग के लिए हो गया। शशि ने अपने मजबूत इरादों की वजह से इस प्रशिक्षण को सफलतापूर्वक पूरा किया। शशि इस समय पोर्ट ब्लेयर एयरपोर्ट पर तैनात हैं। शशि कहती हैं कि लड़कियों को खुद पर भरोसा करना चाहिए। जीवन में जो कुछ भी हासिल करना है वह इसी भरोसे से पाया जा सकता है। जो अंदर से मजबूत होती हैं और खुद पर निर्भर होती हैं उसकी राह में लाख बांधाएं आएं वह उसे पार करके अपनी मंजिल हासिल कर ही लेती हैं।