रामंदिर का मामला न्यायालय द्वारा लगातार टाला जा रहा है। इस पर सभी को आश्चर्य है। ऐसे में देश का युवा कह रहा है कि सुनवाई तो कर लीजिये। मगर सुनवाई हर बार टाल दी जाती है।
न्यायालय के इस रुख को देखकर आम जनमानस सरकार से अध्यादेश लाने के लिए कह रहा है। पर अदालत में उसे भी चुनौती दी जा सकती है। लेकिन जहां रामलला विराजमान हैं वहां मंदिर ही था, इसके अकाट्य साक्ष्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को खुदाई के दौरान मिले। इसलिए सिर्फ गुम्बद के नीचे ही नहीं, वहां की पूरी भूमि आराध्य और पूज्य है। 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला आया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि निर्मोही अखाड़ा का मुकदमा खारिज किया जाता है। सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा भी खारिज किया जाता है। अब जीता कौन? विजयी हुए सिर्फ रामलला विराजमान। मुकदमे के पक्षकार देवकी नंदन अग्रवाल, जो ‘नेक्स्ट फ्रेंड आॅफ रामलला’ के तौर पर पक्षकार थे। उनका ही पक्ष विजयी हुआ। लेकिन मुकदमे का फैसला करते समय पंचायत बैठा दी गई। इसलिए सभी पक्षकार सर्वोच्च न्यायालय गए। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह तो भूमि विवाद का मुकदमा था, इसमें बंटवारा क्यों किया गया।
सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई शुरू हुई पर उस सुनवाई को लगातार टलवाने का प्रयास हुआ। पहले यह कहा गया कि 7 जजों की बेंच में सुनवाई की जानी चाहिए। फिर यह हुआ कि यह 14 हजार पेज का फैसला है, जिसका अंग्रेजी में अनुवाद करने में बहुत समय लगेगा। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मात्र 4 महीने में 14,000 पन्नों का अनुवाद करा दिया। और फिर 29 अक्तूबर, 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह मुकदमा उसकी प्राथमिकता में नहीं है।
समस्या यह है कि हमारे पास साक्ष्य हैं। हम लगातार कह रहे हैं कि वहां पर मंदिर होने के प्रमाण मिल चुके हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले में यह साबित भी हो चुका है। फिर किस बात की देरी है? हम लोग यही प्रार्थना कर रहे हैं कि केवल आप सुनवाई कर लीजिये मगर किसी ना किसी बहाने सुनवाई टलवा दी जा रही है। एक बार जब सुनवाई शुरू हुई तो अदालत में यह कहा गया कि इस मुकदमे की सुनवाई को लोकसभा चुनाव 2019 तक टाल दी जाए। आखिर दूसरे पक्षकार सुनवाई से भाग क्यों रहे हैं? हम सभी को मालूम है कि वे सुनवाई से क्यों भाग रहे हैं क्योंकि उन्हें फैसले में कोई दिलचस्पी नहीं है। हम उम्मीद करते हैं कि जनवरी के महीने से सुनवाई शुरू हो जायेगी।
saabhar paanchjanya