जान बचाने के लिए कूदना पड़ा ‘सरयू’ में…अरविंद स्वामी

कार सेवक श्रृंखला – 9

जयपुर
मुझे 1990 की कारसेवा में जाने का अवसर मिला। उस समय में चुरू जिले के सुजानगढ़ में रहता था। चारों ओर उत्साह का वातावरण था कि कारसेवा में जाना है,हमें बैठकों में बताया गया कि जो भी कारसेवा में जाए वो दृढ़ निश्चय के साथ तैयार हो।
मैं और मेरे साथी हम सभी दृढ़ निश्चय के साथ रेलवे स्टेशन पर एकत्रित हुए। हमें तिलक लगाकर व माला पहनाकर कारसेवा के लिए विदा किया गया।
साथ ही हमें समझाया गया था कि हमें साथ रहना है। हम अयोध्या के लिए रवाना हुए, ट्रेन में भीड़ होने के कारण हम ट्रेन की छत पर बैठकर दिल्ली तक गए। बाद में ट्रेन के अंदर बैठे। हमें निर्देश दिया गया था कि जैसे ही चैन पुलिंग होगी, वैसे ही हमें ट्रेन से उतरकर खेत की ओर दौड़ना है। लगभग 4 बजे ट्रेन चैन पुलिंग हुई और हम सभी सैंकड़ों की संख्या में खेतों की ओर दौड़ने लगे। हम लगभग 5 दिन पैदल चले। रास्ते में जहां भी रात होती वहां हम खेतों में चावल की कटाई के बाद बचने वाले चावल के घास से बिस्तर बना कर उस पर सोते थे।
उस समय के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने यह कहा था कि अयोध्या में कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। ग्रामीणों का कारसेवकों के लिए बहुत योगदान रहा। जैसे ही सेना के हेलीकॉप्टर गस्त लगाने आते, हम कारसेवक गन्ने के खेतों में छुप जाते थे या वहीं जमीन पर लेट जाते थे। जिससे उन्हें दिखाई न दें।
कई स्थानों पर कारसेवकों को पकड़ पकड़कर अस्थाई जेलों में डाला जा रहा था। परंतु हमारा सामना पुलिस से नहीं हुआ। सरयू किनारे पहुंचते ही वहां हमने देखा कि हजारों की संख्या में कारसेवकों का हुजूम एकत्रित हो गया। भीड़ इतनी अधिक थी कि चलना मुश्किल हो रहा था। वहीं आगे खड़ी पुलिस कारसेवकों पर लाठी चार्ज कर रही थी,कुछ कारसेवक जिन्हें तैरना आता था,वे सरयू में कूद गए।
एक क्षण ये लगा कि आज मृत्यु निश्चित हैं। मुझे बहुत अधिक तैरना नहीं आता था परंतु मैने सोचा इस प्रकार मरना ही है तो सरयू में कूदना ही ठीक है, शायद कोई अन्य साथी मुझे बचा लेंगे। यही सोचकर मैं सरयू पहुंचा। मेरे साथी और सामान का कुछ अता पता नहीं चला। समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करूं?
दूसरे दिन मैंने देखा कि सरयू नदी से अयोध्या की ओर वाले रास्ते से कुछ शव यात्राएं जा रहीं थीं, जिन्हें पुलिस भी रास्ता दे रही थी। ये यात्राएं अयोध्या होते हुए सरयू के दूसरे किनारे तक जा रहीं थीं। तभी शाम के लगभग 4 बजे एक शव यात्रा वहां आई ,जो सरयू पुल की ओर बढ़ रही थी, मैं जल्दी से उनके पीछे गया और यात्रा में सम्मिलित हो गया, इस प्रकार कि उनको मालूम नहीं हुआ।
जैसे—तैसे मैं अयोध्या में प्रवेश कर गया। वहां कुछ अन्य साथी भी मुझे मिले,अयोध्या में घूमते घूमते मैं हनुमानगढ़ी पहुंचा। जहां अशोक सिंघल जी का भाषण चल रहा था। वहीं जहां मंदिर और ढांचे के पास तारबंदी और पुलिस का जत्था था। उस ओर जब कारसेवकों ने आगे बढ़ने का प्रयास किया तो गोलियां चलने लगी।
कई कारसेवक बंधु इसमें मारे गए और पूरी अयोध्या में भगदढ़ मच गई। याद है मुझे जब कारसेवकों को खींचकर अयोध्या से बाहर निकाला जा रहा था। और यह आदेश था कि कारसेवकों को जहां भी जाना है उन्हें किसी भी रेलगाड़ी से जाने दिया जाए, परंतु अयोध्या से बाहर निकालना है।
कारसेवकों को मालगाड़ियों के खाली डिब्बों में भर दिया गया। मैं एक मालगाड़ी के डिब्बे में था। आगे जा कर मैं दिल्ली पहुंचा। दिल्ली पहुंचकर अपने एक मित्र को फोन किया। उसने मेरी सहायता की। मुझे चप्पल व कपड़े लाकर दिए और दूसरी ट्रेन पकड़कर मैं घर पहुंचा।
आज बहुत खुशी हो रही है कि इसी जन्म में अपनी आंखों से ‘रामलला’ के भव्य मंदिर का निर्माण होते हुए देख रहा हूं।

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