अयोध्या का हृदय विदीर्ण कर दिया गोलियों की आवाज ने…- कारसेवक: सत्यनारायण गुप्ता


कारसेवक श्रंखला- 10

—मौत का खेल लगभग पौने दो घंटे चला
जयपुर। बात वर्ष 1990 की है, जब दिवाली के दो दिन बाद ही पूरे देश भर से कार सेवक अयोध्या के लिए निकल पड़े थे, लेकिन 22 अक्टूबर को आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद भारत बन्द रहा और हिंसात्मक दंगो के कारण जयपुर में भी कर्फ्यू लगा दिया गया था। इसके चलते जयपुर से सिर्फ चौदह कार सेवक ही अयोध्या के लिए रवाना हो सके थे। तब हमने 46 कार सेवकों के दो गुट बनाकर अयोध्या पहुंचने का निर्णय लिया। इसके बाद सभी 26 अक्टूबर की सुबह दिल्ली पहुंचे। वहां से काशी विश्वनाथ एक्स्प्रेस से दोपहर दो बजे लखनऊ के लिए रवाना हुए। हम सभी अलग- अलग डिब्बों में बैठे। हम सभी ने पहले ही तय कर लिया था, चाहे कितनी ही बड़ी समस्या आ जाए, उसका सामना करके हर हाल में अयोध्या पहुंचना ही है।
हमने केसरिया दुपट्टा दिल्ली में ही त्याग दिया था। इसकी वजह थी सीधे रूप से हमारी कोई पहचान न हो। पहले हमने मुरादाबाद तक का टिकट लिया, जैसे ही ट्रेन ने उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश किया, वहां पर स्टेशन से कुछ ही दूरी पर गाड़ी को रोककर कारसेवकों की तलाशी ली जाने लगी और दुपट्टा पहने करसेवको को गाड़ी से नीचे उतार दिया गया। हमारे गुट के पांच साथी भी गिरफ्तार कर लिए गए थे।
वो दिन अब भी आंखों में तेरता हैं, मानों अभी- अभी की ही बात हो। जैसे ही मुरादाबाद स्टेशन आया, बड़ी संख्या में खड़ी पुलिस ने कासेवकों को पकड़ना शुरु किया, मैं भी पकड़ा गया। मुझे बड़ा दुःख हुआ कि मेरे आयोध्या पहुंचने का सपना टूट गया, अब क्या होगा?
तभी हम कुछेक साथियों ने युक्ति लगाई और चुपके से पुलिस घेरे से निकलकर वापस ट्रेन में आकर बैठ गए। कुछ ही देर में गाड़ी चल पड़ी। हमें ये तो ज्ञात हो गया था कि लखनऊ में तगड़ी चैकिंग हो रही है। इसलिए लखनऊ से करीब पांच किमी पहले ही रात्रि के दो बजे गाड़ी की चैन खींचकर रूकवा दी। और हम सभी भाग निकलें।
याद आता है मुझे वो अधूरा बना हुआ मकान, जहां पर हमनें सुबह पांच बजे तक विश्राम किया था। पांच दिनों तक हम इधर- उधर भटकते रहे और लगभग 250 किमी पैदल चलकर शाम होते होते हम अयोध्या पहुंच ही गए। अयोध्या में पहुंचते ही लगा मानो राम की नगरी कारसेवकों का सत्कार करने के लिए उमड़ पड़ी हो। जगह जगह चाय भोजन की व्यवस्था। चारों तरफ कारसेवक ही कारसेवक नजर आ रहे थे। रात्रि को भोजन कर एक आश्रम में विश्राम किया। यहां आने के बाद एक नंवबर की सुबह मनीराम छावनी में कई लोगों के भाषण सुनें। मन उस समय बहुत खुश हो गया जब ‘सरयू’ नदी के पवित्र जल से स्नान किया।
मैं कभी भी दो नवंबर की घटना को नहीं भूला पाया। मैंने अपनी आंखों से सबकुछ देखा था। एक ऐसा काला अध्याय जिसे मुलायम सिंह ने लिखा था। इस दिन योजना एकदम स्पष्ट थी कि, शांत तरीके से कारसवेकों की दो यात्राएं निकाली जाएगी, जो रामजन्म भूमि तक पहुंचेगी।
यात्रा में लगभग 20 हजार कारसेवक थे। यात्राओं को राम जन्मभूमि से लगभग डेढ़ किलोमीटर पहले ही पुलिस ने दिया। सभी कारसेवक शांतिपूर्वक रामधुनी करने लगे। तभी पुलिस ने आंसू गैस के कई गोले एक साथ छोड़े व लाठियां बरसानी शुरु कर दी। चारों ओर भगदड़ मच गई और गोलियों की दनदनाती आवाज अयोध्या नगरी का हृदय विदीर्ण करने लगी। सारे नियम चकनाचूर कर पुलिस वालों ने बिना आदेश के शांत यात्रा पर गोलीबारी शुरु कर दी। मौत का यह खेल लगभग पौने दो घंटे तक चलता रहा। इसमें बड़ संख्या में कारसेवक मारे गए।
आज अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर को देखकर बहुत प्रसन्नता हो रही हैं। 22 जनवरी को जब मंदिर में प्रभु श्री ‘रामलला’ विराजमान होंगे तो ये उन कारसेवकों के लिए भी सच्ची श्रृद्धांजलि होगी जिनके अथक प्रयासों से ये दिन साकार होने जा रहा है।

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