कहीं गिर न पड़े ट्रेन की छत से, सताता रहा भय… कारसेवक: सरदार सिंह

कार सेवक श्रंखला- 8

जयपुर। याद हैं मुझे वो दिन ”जब कारसेवा के नाम पर केवल सरयू की मिट्टी लेकर मंदिर के सामने डालनी है, यही कारसेवा है, इस समाचार पर कार सेवकों में रोष व्याप्त हो गया था।”
छह दिसम्बर को मैं और मेरे साथी निर्धारित समय व स्थान पर सुबह दस बजे आकर बैठ गए। आसपास की गतिविधियों को देखते रहे। ऐसा लग रहा था मानो कोई युद्ध सा है। उत्तर प्रदेश पुलिस बार-बार आकर कारसेवकों को निश्चंत कर रही थी, डरे नहीं, कोई कार्रवाई नहीं होगी।
ये सुनकर कारसेवकों ने राहत भरी सांस ली। लेकिन अयोध्या में सड़कों पर चारों ओर धुएं के बादल उड़ने लगे तो लगा युद्ध चालू हो गया है। अब बचना मुश्किल है।
मैंने भी अपने साथियों से कहा, ‘उठो, आगे बढ़ो’, देखते हैं हो क्या रहा है? लेकिन पुलिस की निगरानी में जो जहां था वहीं बैठा रहा। शाम को अयोध्या में दीपावली जैसा दृश्य था। हर घर के बाहर चाय से भरी स्टील की टंकियां थी। मिट्टी के सकोरे और मिठाइयों से भरी पराते रखी गई। जिसकी जितनी इच्छा हो खाओ, इसका कोई मूल्य नहीं देना था। हम सभी साथियों ने भी मिठाईयां खाई। रामधुनी शुरू हो गई। चारों तरफ प्रभुश्री राम के जयकारे गूंजने लगे। ऐसा अद्भुत दृश्य मैंने अपने जीवन में नहीं देखा। आज भी जब वो दिन याद करता हूं तो खुशी से गदगद हो उठता हूं।
अगले दिन शाम को हम सभी कारसेवक साथी ट्रेन में जहां पर जैसी जगह मिली, उसी में बैठकर रवाना हो गए। याद आता हैं मुझे वो क्षण भी, जब हम ट्रेन की छत पर एक दूसरे को कसकर पकड़कर बैठ गए। ताकि गिरे नहीं। रास्ते में कारसेवकों को भोजन के पैकेट दिए गए।
9 दिसंबर को जब मैं अपने साथियों के साथ बांदीकुई पहुंचा। आज पलटकर देखता हूं तो वो दिन ऐसा लगता हैं, मानो अभी- अभी की ही बात हैं। इस बात से बहुत प्रसन्नता भी हो रही हैं कि प्रभु श्री ‘रामलला’ अयोध्या में विराजित हो रहे हैं। इससे बड़ी और कोई खुशी इस समय हो ही नहीं सकती। सभी भारतीय इस दिन को आनंद और उत्सव के रूप में मनाए यही मेरे लिए परम आनंद होगा।

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