विद्या भारती का प्रांतीय आचार्य सम्मेलन
विसंकेजयपुर
सीकर। संविधान निर्माता डॉ.भीमराव अंबेडकर की 125 वीं जयंती, दीनदयाल उपाध्याय एवं रा.स्वयंसेवक संघ के तृतीय प.पू.सरसंघचालक बालासाहब देवरस की जन्मशताब्दी पर विद्या भारती, जयपुर का खाटूश्याम स्थान पर प्रांतीय आचार्य सम्मेलन आयोजित हुआ। सम्मेलन में जयपुर प्रांत के बारह जिलों से पन्द्रह सौ आचार्य और आचार्याओं ने हिस्सा लिया। तीन दिवसीय इस सम्मेलन में विद्यार्थियों को संस्कारित करने जैसे विभिन्न विषयों पर चिंतन—मंथन हुआ।
सम्मेलन की शुरूआत विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के रा.सह—संगठन मंत्री श्रीराम अरावकर ने दीपप्रज्वलित कर की। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि हिन्दुत्वनिष्ठ देशभक्ति से ओतप्रोत शिक्षा देना विद्या भारती का उद्देश्य है। उन्होंने यह भी कहा कि आज शिक्षा के लिए बल्कि परीक्षा पास करने के लिए पढाई कराई जाती है जो प्रतिशत तो बना रही है लेकिन व्यक्ति निर्माण की दृष्टि से ज्यादा कारगर नहीं है।
डॉ.भीमराव अंबेडकर फाउण्डेशन अम्बेडकरपीठ के महानिदेशक के.एल बेरवाल ने कहा कि शिक्षा में पात्रता और संस्कार दोनों आवश्यक है। शिक्षा के माध्यम से व्यक्तित्व, चरित्र एवं संस्कारों का निर्माण कैसे हो इसका बराबर चिंतन होता रहना चाहिए। समारोह में उपस्थित राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने भी शिक्षा के बजाए फीस के आधार पर स्कूलों का स्तर मानने की अभिभावकों की मानसिकता पर प्रहार किया।
दोहरा जीवन नहीं
सम्मेलन के समापन समारोह में सांसद श्री सुमेधानंद का रहना हुआ। उन्होंने संबोधन में कहा कि आत्मा को संस्कारित करके ही मनुष्य का निर्माण किया जा सकता है। उनका कहना था कि मनुष्य का निर्माण करनेवालों के दोहरे जीवन नहीं हुआ करते हैं। उन्हें तो स्वयं को आदर्श जीवन जीकर दिखाना होता है।