चंद्रभागा संगम पर्व का आयोजन

चंद्रभागा-संगम-पर्व-1शिमला (विसंकें).

माननीय अशोक जी सिंघल के अस्थि विसर्जन के अवसर पर चन्द्रभागा संगम पर्व का शुभारंभ हुआ. हिन्दू एवं बौद्ध रीति से अशोक जी का अस्थि विसर्जन हुआ. साथ ही 100 वर्षों के पश्चात छाछा अनुष्ठान पुनः शुरू हुआ. चीन के एक पर्वत से चन्द्र और भागा दो अलग अलग नदियां तिब्बत के दो छोरों से होती हुई तांदी में आकर मिलती है और इस संगम के स्थान को चन्द्रभागा संगम कहा जाता है. यही नदी कालान्तर में पाकिस्तान में जाकर चिनाव कहलाती है. स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में वर्णन है कि भगवान शिव इसी रास्ते से मणिमहेश अपनी बारात लेकर गए थे, राजा दक्ष ने इसी घाटी में यज्ञ किया था. परम पावन दलाई लामा ने चन्द्रभागा से लेकर मणिमहेश तक पर्वत की परिक्रमा कर कैलाश पर्वत से इसकी तुलना की. पांडव जब स्वर्गारोहण के लिए जा रहे थे तो इसी स्थान पर द्रोपदी ने अपना शरीर त्यागा था. पुत्र या पति ही अग्नि दे सकता है, तो माता पुत्र का रिश्ता मानकर लाहौल के लोगों ने उनका अंतिम संस्कार कर इसी संगम तट पर उनका अस्थि विसर्जन किया था. यूनानी इस नदी को अपशगुनी नदी मानते हैं क्योकि सिकन्दर को इसी नदी के तट पर युद्ध करते हुए तीर लगा था.

माननीय अशोक जी को 2014 में जब चन्द्रभागा के इतिहास का पता चला तो उन्होंने यहां आने की अपनी इच्छा बताई. लेकिन उनका यहां आना नहीं हो सका. श्रद्धेय अशोक जी के देहावसान के बाद जब पूरे देश में उनकी अस्थियां विसर्जन हेतू आई तो कार्यक्रमों के दौरान हिमाचल विवि के प्रो. चन्द्रमोहन परशीरा जी ने चन्द्रभागा संगम पर अस्थि विसर्जन करने का सुझाव दिया. ऐसा लगा मानो अशोक जी की अंतिम इच्छा जो यहां आने की थी, सशरीर पूरी न हो पाई. उसे उनकी अस्थि विसर्जन कर पूरा किया जाए. कार्यक्रम 28 नवम्बर का तय हुआ, लेकिन खराब मौसम के कारण लाहौल न जा पाए और माननीय अशोक जी की अस्थियों को मनाली स्थित बौद्ध गोम्पा में रखा गया तथा आठ माह तक बौद्ध रीति रिवाज से अशोक जी की अस्थियों का प्रतिदिन पूजा पाठ होता रहा. आठ माह के बाद 29 जून2016 को चन्द्रभागा के पवित्र संगम पर बौद्ध एवं हिन्दू रीति के अनुसार अस्थि विसर्जन किया गया. गायत्री परिवार, डीलबू्र गोम्पा एवं श्रीराम शरणम् के अनुयायियों द्वारा संगम की तीनों दिशाओं में यज्ञ किया गया, और विश्व शान्ति की कामना की.

अस्थि विसर्जन कार्यक्रम में चन्द्रभागा संगम पर्व व सैकड़ों वर्षों से लुप्त छाछा अनुष्ठान की शुरूआत की गई. लाहौल स्पीति की 22000की आबादी में से 8000 बन्धु/माताएं/बहनें व बच्चे चंद्रभागा-संगम-पर्व-8-300x200इसके सहभागी व साक्षी बने. पर्व वेणु समागम नामक पर्व लाहौल स्पीति वाद्य यंत्रों की लुप्त हो रही परम्पराओं को फिर से पुनर्जीवित करने का एक प्रयास है.

अशोक जी को श्रद्धांजलि देते हुए मनाली के विधायक गोविन्द ठाकुर ने अशोक जी के नाम पर संगम स्थल गौशाल गांव को गोद लेने की घोषणा की तथा इस स्थान पर बनने वाले अशोक घाट के लिए इक्यावन हजार रूपये देने की घोषणा की. कार्यक्रम में उपस्थित सांसद राम स्वरुप शर्मा ने भी अशोक घाट एवं अशोक स्तम्भ बनाने की घोषणा की. केन्द्रीय विश्वविद्यालय के वीसी डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने भी चन्द्रभागा संगम के इतिहास की जानकारी उपस्थित लोगों के सामने रखी एवं अशोक जी के व्यक्तित्व पर जानकारी दी. प्रदेश संगठन मंत्री ने चन्द्रभागा संगम पर्व को चीन,तिब्बत, भारत और पाकिस्तान के बीच का मैत्री सेतू करार दिया, और कहा कि आने वाले समय में यह स्थान अशोक जी के प्रताप से अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करेगा. जिस तरह अशोक जी ने विश्व हिन्दू परिषद् को पूरे विश्व में खड़ा किया यह संगम पर्व भी उसी तरह विश्वविख्यात होगा. चन्द्रभागा संगम पर्व के अध्यक्ष डॉ. चन्द्रमोहन परशीरा ने घोषणा की कि हर वर्ष चन्द्र भागा संगम उत्सव मनाया जाएगा, हमारे पूर्वजों की विरासत को हम पर्व के माध्यम से याद कर सकेंगे.

 

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