‘वक्फ’ कानून की आड़ में मुसलमानों का कब्जे का खेल

वक्फ कानून की आड़  में कुछ लोग जमीन हथियाने और पुराने महलों पर कब्जा करने का धंधा करने लगे हैं। इससे कई जगह सांप्रदायिक सद्भाव खराब हो रहा है और मामले अदालत तक पहुंच रहे हैं। इससे जुड़े आगरा के दो मामले इन दिनों चर्चा में हैं। ताजा मामला है जगनेर रोड स्थित संत ठाकुर कमाल सिंह की समाधि का और दूसरा है ताजमहल का।
उल्लेखनीय है कि संत ठाकुर कमाल सिंह की समाधि का इतिहास करीब 300 साल पुराना है। आगरा के लोगों के अनुसार कालक्रम में इसका नाम बदल गया और लोग इसे ‘कमाल खां दरगाह’ के नाम से जानने लगे। इसके परिसर में संत ठाकुर कमाल सिंह और उनकी सवारी हाथी की प्रतिमा के साथ-साथ बुलाकी बाबा, कमाल देवी, भोलेनाथ, बजरंग बली और कालका माता के मंदिर हैं। लिहाजा यहां प्राय: हिंदू ही आते हैं। यही नहीं, यहां हर वर्ष नौचंदी का मेला भी लगता है। हिंदू यहां मुंडन संस्कार भी कराते हैं। किसी की मन्नत पूरी होने पर यहां घंटी बांधने की परंपरा भी रही है।
लेकिन इस जगह को अब वक्फ बोर्ड से जुड़े असामाजिक और मुल्लावादी तत्वों की नजर लग गई है। वे लोग इस समाधि पर कब्जा करने का षड्यंत्र रच चुके हैं। जब उनका षड्यंत्र विफल हो गया तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय पहुंच गए। वहां उनकी दलील नहीं चली और मामला निरस्त हो गया। करीब सात-आठ महीने पहले मामला उस वक्त बढ़ा जब रात के अंधेरे में समाधि स्थल के बाहर कुछ लोगों ने वक्फ बोर्ड का एक बोर्ड टांग दिया। समाधि से जुड़े लोगों ने इसका विरोध किया। उल्लेखनीय है कि समाधि की देखरेख ‘बाबा कमाल खां मंदिर ट्रस्ट’ करता है। इसमें चार हिंदू (फूल सिंह, तेज सिंह, गुलाब सिंह और मुंशी सिंह) और एक मुसलमान कुर्बान अली है। समाधि की जगह का पट्टा इन्हीं लोगों के नाम से है। स्वाभाविक रूप से इन लोगों ने वक्फ बोर्ड का विरोध किया। आखिरकार लोगों ने उस बोर्ड को वहां से उतार फेंका।
इसके बाद सिराजुद्दीन नामक एक व्यक्ति ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया। उसने याचिका में आरोप लगाया था कि ‘कुछ हिंदुओं ने जबरन समाधि (दरगाह) पर कब्जा कर लिया है इसलिए उसे हिंदुओं से मुक्त कराया जाए।’ लेकिन अदालत में उसकी दलील टिक नहीं पाई। इसके बावजूद इस मामले को लेकर कुछ लोग नई-नई हरकतें कर रहे हैं।
ऐसे ही तत्व ताजमहल पर भी कब्जा करना चाहते हैं। उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ताजमहल को वक्फ संपत्ति बताते हुए उसे बोर्ड को सौंपने की मांग की थी। यह मामला इतना बढ़ा कि सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंंच गया। ताजमहल की देखरेख करने वाली संस्था भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) का कहना है कि ताजमहल वक्फ संपत्ति नहीं है, लेकिन दूसरा पक्ष इसे वक्फ संपत्ति बता रहा है। यह कहने का हौसला उसे वक्फ कानून के जरिए ही मिला है।
आगरा के सामाजिक कार्यकर्ता दिग्विजयनाथ तिवारी कहते हैं, ‘‘चाहे बाबा कमाल खां की समाधि हो या ताजमहल, इनके पीछे वक्फ कानून -1995 है। इसके तहत मुसलमानों को किसी भी जमीन पर कब्जा करने का दुस्साहस मिला है। इसलिए इस कानून को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।’’
उल्लेखनीय है कि दिग्विजयनाथ तिवारी ने 9 अगस्त को वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन के जरिए सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका (000989/2018) दायर की है। याचिका में मुख्य रूप से दो बाते हैं- पहली, देशभर में जितनी भी वक्फ संपत्तियां हैं, उनकी जांच कराई जाए और दूसरी, वक्फ कानून में संशोधन किया जाए।
तिवारी यह भी कहते हैं, ‘‘वक्फ बोर्ड वाले किसी भी जमीन पर कब्जा कर लेते हैं, लेकिन उस जमीन को उनसे वापस लेने के लिए कोई तरीका नहीं है। यही कारण है कि आए दिन कहीं न कहीं अवैध मजार या मस्जिदें बनती हैं और उन्हें वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जाता है। यह जमीन जिहाद है।’’
याचिका में कहा गया है कि वक्फ कानून मुसलमानों और अन्य मत-पंथ के लोगों के बीच मजहबी स्थलों के मामले में भेदभाव करता है। इससे भारत की पंथनिरपेक्षता को भी चुनौती मिलती है। तिवारी कहते हैं, ‘‘उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड कानून का दुरुपयोग करके लगातार सरकारी और हिंदुओं की निजी संपत्तियों को वक्फ संपत्ति घोषित कर रहा है। इसी कड़ी में उसने हिंदुओं द्वारा 300 साल से देखरेख की जा रही ‘बाबा कमाल खां समाधि’ को वक्फ संपत्ति घोषित किया है। यही नहीं, 31 जनवरी, 2018 को वक्फ संपत्ति का प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया है। याचिका में इसे रद्द करने की मांग भी की गई है।’’ याचिका में सवाल भी उठाया गया है कि क्या संसद हिंदुओं के न्यास, मठ, मंदिर और धर्मार्थ संस्थाओं की तुलना में मुसलमानों की वक्फ संपत्तियों को अधिक अधिकार और शक्तियां देने का कानून बना सकती है?
वकील हरिशंकर जैन कहते हैं, ‘‘सेंट्रल वक्फ कानून 1995 के द्वारा बोर्ड को असीमित अधिकार मिले हैं। इसकी आड़ में वह किसी सरकारी संपत्ति या मठ-मंदिर की संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है, जबकि बोर्ड की कार्रवाई से परेशान व्यक्ति की सुनवाई के लिए कोई उचित मंच नही है।’’यही कारण है कि देश के अनेक भागों में वक्फ कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है। इसको देखते हुए ही इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।
सेंट्रल वक्फ कानून 1995 के द्वारा वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां मिली हैं। इसकी आड़ में वह किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है, जबकि बोर्ड की कार्रवाई से परेशान व्यक्ति की सुनवाई के लिए कोई उचित मंच नही है।   
— हरिशंकर जैन, वकील
चाहे बाबा कमाल खां की समाधि हो या ताजमहल, इनके पीछे वक्फ कानून 1995 है। इसके तहत मुसलमानों को किसी भी जमीन पर कब्जा करने का हौसला मिला है। इसलिए इस कानून को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।
— दिग्विजयनाथ तिवारी, याचिकाकर्ता
3,00000 वक्फ संपत्तियां
आगरा का ताजमहल, जिस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड की नजर है। वह इस पर कब्जा चाहता है।
सेना और रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड के बाद सबसे अधिक संपत्तियां हैं। आज पूरे देश में 3,00000 वक्फ संपत्तियां हैं। इन संपत्तियों के पास करीब 4,00000 एकड़ जमीन है। मुसलमानों की मजहबी संपत्तियों की देखरेख के लिए पहली बार 1923 में वक्फ कानून बना था। उस कानून में ऐसी कोई बात नहीं थी, जिससे किसी को कोई आपत्ति हो। 1956 में इसमें थोड़ा बदलाव किया गया। 1995 में इसे ज्यादा ताकतवर बनाया गया। इसके बाद 2013 में इसमें कुछ संशोधन किए गए और बोर्ड को अपार शक्तियां दे दी गर्इं। इन शक्तियों का इस्तेमाल जमीन कब्जाने के लिए किया जाता है।
अवैध को वैध बनाने वाला कानून
अधिवक्ता हरिशंकर जैन बताते हैं कि वक्फ कानून की धारा 4, 5 और 36 के अनुसार वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है, चाहे वह अवैध ही क्यों न हो। यही कारण है कि किसी भी अवैध मजार या मस्जिद को वैध बनाने में दिक्कत नहीं होती है, भले ही वह वक्फ कानून की कुछ खतरनाक धाराएं 50 साल बाद ही वैध हो।
वक्फ एक्ट – 1995 की धारा 40 के अनुसार कोई भी व्यक्ति वक्फ बोर्ड में एक अर्जी लगाकर अपनी संपत्ति वक्फ बोर्ड को दे सकता है। यदि किसी कारण से वह संपत्ति बोर्ड में पंजीकृत नहीं होती है तो भी 50 साल बाद वह संपत्ति वक्फ संपत्ति हो जाती है। इस कारण सैकड़ों अवैध मजारें और मस्जिदें वक्फ संपत्ति हो चुकी हैं। अवैध होने के कारण इन मस्जिदों/ मजारों के पास जमीन से संबंधित कागज नहीं होते हैं। इसलिए इसके संचालक वक्फ बोर्ड में अर्जी लगाकर छोड़ देते हैं।
धारा 40 में यह भी प्रावधान है कि किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले उसके मालिक को सूचित करना जरूरी नहीं है। चुपके से वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जाता है और बाद में असली मालिक वक्फ काउंसिल में मुकदमा लड़ता रहता है। देखा जाता है कि काउंसिल ज्यादातर मामलों में वक्फ बोर्ड का ही साथ देती है।
धारा 52 में लिखा है कि यदि किसी की जमीन, जो वक्फ में पंजीकृत है, उस पर किसी ने कब्जा कर लिया है तो वक्फ बोर्ड जिला दंडाधिकारी से जमीन का कब्जा वापस दिलाने के लिए कहेगा। नियमत: जिला दंडाधिकरी 30 दिन के अंदर जमीन वापस दिलवाएगा। यानी वक्फ बोर्ड तो अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए अनेक कानूनों को लेकर बैठा है, लेकिन यदि वक्फ बोर्ड ने किसी जमीन पर कब्जा कर लिया तो उसे वापस लेना आसान नहीं होता है।
धारा 54 में यह व्यवस्था है यदि वक्फ संपत्ति पर अतिक्रमण की सूचना मिलती है तो मुख्य कार्यपालक अधिकारी वक्फ प्राधिकरण (ट्रिब्यूनल) में उस कब्जे को हटाने के लिए प्रार्थना पत्र देगा।
धारा 55 (ए) में यह प्रावधान है कि धारा 54(4) के अंतर्गत जो संपत्ति अतिक्रमण से मुक्त करवाई गई उस संपत्ति को मुख्य कार्यपालक अधिकारी नीलामी के द्वारा बेच सकता है।
धारा 83 (4) के अंतर्गत वक्फ प्राधिकरण का गठन होता है, जिसमें एक सदस्य राज्य न्यायिक सेवा का, जो कि जिला न्यायाधीश अथवा सिविल न्यायाधीश प्रथम श्रेणी का हो। दूसरा सदस्य, जो अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी के समकक्ष हो और तीसरा सदस्य मुस्लिम कानून/विधि का जानकार हो यानी मुसलमान हो।
धारा 89 में व्यवस्था है कि वक्फ बोर्ड के विरुद्ध कोई भी दावा करने से पहले 60 दिन पूर्व का नोटिस देना आवश्यक है। यह प्रावधान भारतीय दंड संहिता (सी. पी. सी.) की धारा 80 के समतुल्य है। ऐसा कोई प्रावधान किसी हिंदू ट्रस्ट/मठ की संपत्ति के बारे में नहीं है।
धारा 90 में यह व्यवस्था है कि वक्फ प्राधिकरण के समक्ष दाखिल संपत्ति पर कब्जा या मुतवल्ली (केयरटेकर) के अधिकार से सम्बंधित कोई वाद लाया जाता है तो प्राधिकरण उसी व्यक्ति के खर्चे पर बोर्ड को नोटिस जारी करेगा, जिसने वाद दायर किया है।
धारा 90 में यह भी व्यवस्था है कि किसी वक्फ संपत्ति को किसी दीवानी मुकदमे के बाद नीलाम करने की नौबत आती है तो उसकी सूचना बोर्ड को पहले दी जाएगी।
इसी तरह से धारा 91 में यह व्यवस्था है कि यदि वक्फ बोर्ड की कोई जमीन सरकार द्वारा अधिगृहित किया जाना है तो पहले वक्फ बोर्ड को बताया जाएगा। बोर्ड तीन महीने के अंदर अपनी राय बताएगा तब तक सरकार को इंतजार करना होगा।
धारा 101 (1) में व्यवस्था है कि सर्वे आयुक्त, वक्फ बोर्ड के सदस्यगण और वे सभी अधिकारी, जो बोर्ड के कार्यों को संपादित करने के लिए नियुक्त किए गए हैं, वे सभी आई. पी. सी. के तहत लोक अधिकारी (पब्लिक सर्वेंट) माने जाएंगे।
धारा 101(2) में यह भी व्यवस्था है कि प्रत्येक मुतवल्ली, वक्फ डीड के अनुसार नामित प्रबंध समिति के सदस्यगण और वे सभी पदाधिकारी, जो वक्फ के काम में लगे हैं, वे भी आई. पी. सी. के तहत लोक अधिकारी होंगे।
धारा 104 (बी.), जो कि 2013 में जोड़ी गयी है, इसमें व्यवस्था है कि यदि किसी सरकारी एजेंसी ने वक्फ संपत्ति पर कब्जा कर लिया है तो उसे बोर्ड या दावेदार को प्राधिकरण के आदेश पर छह महीने के अंदर वापस करना होगा। सरकार की कोई भी एजेंसी यदि जनहित के लिए कोई भी संपत्ति लेना चाहे तो उसका किराया या क्षतिपूर्ति बाजार दर पर प्राधिकरण द्वारा तय की जाएगी।
दफनाने की पुरानी परंपरा
वक्फ बोर्ड ने कई स्थानों पर हिंदू भूमि/ मठ संपत्ति को अपना बताया है। आधार बनाया है जमीन के अंदर से निकलीं मानव हड्डियों को। उनका कहना है कि मरने के बाद मुसलमानों को दफनाया ही जाता है। यानी जहां भी मानव हड्डियां निकल रही हैं, वे स्थान कभी न कभी मुसलमानों से जुड़े हुए रहे हैं। इन्हें पता होना चाहिए कि हिंदू संन्यासियों को भूसमाधि दी जाती है। सांप के काटने से मरे लोगों को दफनाया जाता है। यही नहीं, वनवासी, जो हिंदू ही हैं, भी अपने मृत लोगों को दफनाते हैं। मृत छोटे बच्चों को भी दफनाया जाता है।
साभार – पाञ्चजन्य

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