पौरुष और स्वाभिमान को जागृत-झंकृत करने वाली वीरांगना लक्ष्मी बाई

 प्रणय कुमार

ज़रा कल्पना कीजिए, दोनों हाथों में तलवार, पीठ पर बच्चा, मुँह में घोड़े की लगाम; हजारों सैनिकों की सशस्त्र-सन्नद्ध पंक्तियों को चीरती हुई एक वीरांगना अंग्रेजों के चार-चार जनरलों के छक्के छुड़ा देती है; क्या शौर्य और पराक्रम का इससे दिव्य एवं गौरवशाली चित्र कोई महानतम चित्रकार भी साकार कर सकता है? जो सचमुच वीर होते हैं वे अपने रक्त से इतिहास का स्वर्णिम चित्र व भविष्य गढ़ते हैं। महारानी लक्ष्मीबाई, पद्मावती, दुर्गावती ऐसी ही दैदीप्यमान चरित्र थीं। विश्व-इतिहास में महारानी लक्ष्मीबाई जैसा चरित्र ढूँढे नहीं मिलता, यदि उन्हें विश्वासघात न मिलता तो इतिहास के पृष्ठों में उनका उल्लेख किन्हीं और ही अर्थों व संदर्भों में होता! देश की तस्वीर और तक़दीर कुछ और ही होती!

नमन है उस वीरांगना को- जिनके स्मरण मात्र से नस-नस में विद्युत- तरंगें दौड़ जाती हैं, स्वाभिमान से मस्तक ऊँचा हो उठता है, छतियाँ तनकर संगीनों के सम्मुख खड़ी हो जाती हैं। हृदय देशभक्ति के भाव से आप्लावित हो उठता है।

कितना शुभ-सुंदर-स्वस्थ होता कि इस देश की ललनाएँ, इस देश की बेटियाँ लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाओं से प्रेरित-पोषित-संचालित होतीं! कितना साहसिक होता कि इस देश की माँएँ अपनी बेटियों के हाथों में गहने-कंगन-चूड़ियों के शृंगार के साथ-साथ तलवारों का उपहार भी सौंपती, ताकि उनके दामन को छूने से पहले शोहदे-मनचले हजार बार सोचते! कितना पौरुषेय और रौबीला होता कि रोने-कलपने-विलाप करने के स्थान पर देश की संतानें-ललनाएँ वीरता के पाठ पढ़तीं और अपनी ओर कुदृष्टि से देखने वालों को आग्नेय नेत्रों से जलाकर भस्म करने की शक्ति-साहस-सामर्थ्य रखतीं!

ऐसी वीरांगना की जयंती पर हृदय की गहराई से उन्हें शत-शत नमन! कदाचित संभव हो तो आज अपनी बेटियों को लक्ष्मीबाई का जीवन-चरित्र अवश्य बताएँ! और बेटों को तो निश्चित बताएँ ताकि उन्हें यह याद रहे कि इस देश ने यदि सती सावित्री, देवी सीता, माता अनुसूया जैसे सेवा, त्याग, निष्ठा व समर्पण के चरित्र गढ़े हैं तो रानी लक्ष्मीबाई, महारानी पद्मावती, वीरांगना झलकारी बाई जैसे साहस और स्वाभिमान के निर्भीक-जाज्वल्यमान चरित्र भी गढ़े हैं, जो हिम्मत हारने वालों को हौसला देती हैं तो दुष्टों-दुर्जनों-असुरों को सचेत-सावधान-स्तब्ध-भयाक्रांत करती हैं।

अपनी संततियों को निश्चित बताएँ कि यह भारत-भूमि वीर-प्रसूता है। यहाँ त्याग-बलिदान, साहस-स्वाभिमान की गौरवशाली परंपरा रही है। हमें देश के लिए जीना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो मातृभूमि पर मर मिटने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। इसी में तरुणाई है, इसी में यौवन का असली शृंगार है, इसी में कुल-गोत्र-परिवार का मान व गौरव है। जो देश शोणित के बदले अश्रु बहाता हो, वह सदा-सर्वदा के लिए स्वाधीन नहीं रह पाता! सनद रहे, राष्ट्र-देव पर ताजे-टटके पुष्प ही चढ़ाए जाते हैं, बासी-मुरझाए पुष्प तो राह की धूल में पड़े-सने अपने भाग्य को कोसते-तरसते-धिक्कारते रहते हैं।

राष्ट्र-देव पर चढ़ाए जाने वाले ताजे-टटके पुष्प बनिए!

राह में पड़े, ठोकरें खाते बासी-मरझाए फूल नहीं!

वही उस वीरांगना को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी!

वही उस वीरांगना के जीवन से ली गई सच्ची सीख होगी!

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