मकर संक्रांति-पोंगळ के अवसर चैन्नई में आयोजित कार्यक्रम में संघ के सरसंघचालक डॉ मोहनराव भागवत का उद्बोधन……

माननीय क्षेत्र संघचालक जी, माननीय महानगर संघचालक जी, मंच पर उपस्थित सभी मान्यवर एवं नागरिक सज्जन, माता भगिनी.
मैं पहले तो आपका शुभचिंतन करता हूं. पोंगळ तिरुळावाळटिक्कळ, ऐसा कहते हैं न अपने यहां. यह पर्व पूरे भारत में संपन्न होता है. मेरे लिए आनंद की बात है कि आज, इससे पहले भी एक बार तिरुपुर में पोंगळ के दिन मैं उपस्थित था. आज सूर्य पोंगळ है, तिरुपुर में माट्टु पोंगळ था. तीन दिन पूरा पर्व यहां होता है, भारत में और कहीं तीन दिन नहीं होता. इस उत्सव का पूर्ण स्वरूप तमिलनाडु में हमें देखने को मिलता है. पहली बात है, नई फसल, नवान्न घर में आता है. समृद्धि का प्रतीक है तो लक्ष्मी की पूजा होती है. सूर्य की पूजा होती है क्योंकि सूर्य ऊर्जा बढ़ाता है, दिन बड़ा होने लगता है. सूर्य की तपस्या है. ऐसा कहते हैं सूर्य का एक रथ है, लेकिन रथ को एक ही पहिया है. घोड़े सात हैं, लगाम सातों की है. और रास्ता है नहीं, फिर भी रोज सूर्य इधर से उधर जाता हुआ दिखता है. ऐसी तपस्या करके पूरे विश्व को प्रकाश देने वाला सूर्य है. स्वाभाविक रूप से हम उसकी पूजा करते हैं. पूजा करना यानि जिसकी पूजा करते हैं, उसके जैसा होने का प्रयास करना. लक्ष्मी की पूजा करते हैं, लक्ष्मी शक्ति रूपा है तो शक्तिवान बनना है, तपवान बनना है. सूर्य का तप है. सूर्य के पास प्रकाश है, ज्ञान है. कर्म करने का उत्साह है. और कोई गौ पूजा करते हैं. अपने लिए काम करने वाले पशु, उनके प्रति भी हम कृतज्ञ हैं. हमारे लिए काम कौन करता है, सभी काम करते हैं. तो गौ एक प्रतीक है पूरे पर्यावरण का. पूरे पर्यावरण के लिए हम कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, यह साल भर करना है, आज प्रतीक रूप में किया है. और आखिरी दिन काणुम पोंगळ. उसमें जाते हैं, सबको मिलते हैं, जो-जो अपने हैं उनको मिलना. तो अपने कौन हैं, अपने रिश्तेदार भी हैं. अपने लिए काम करने वाले अनेक लोग हैं. जो हमारे बाल काटता है, उससे भी मिलना. धोबी को हम कपड़े देते हैं, वो भी हमारे लिए काम करता है उससे भी मिलना.
हमारा कुटुंब, ब्लड रिलेशन ये एक बात है. जब हम परिवार कहते हैं तो परिसर में जो कुछ है, जो हमारा काम करते हैं, हमारे मित्रवर, हमारे जीवन को चलाते हैं सबको मिलना, सबको शुभचिंतन देना. और शर्करा पोंगळ खाना, वो मीठा है. सबके साथ मधुर संबंध होना चाहिए, मधुर भाषा होनी चाहिए. भाषा कटु होगी तो झगड़ा होगा, झगड़ा नहीं करना है. भाषा कटु हुई तो दूसरे को तकलीफ होती है.
कुरल में कहा है न “तीयिनाल सुट्ट पुण उल्लारुम इरादे नाविनाल सुट्ट वडु”, तो ये जो तीन है, ती से घाव नहीं करना, ती से जलाना नहीं.
यह सब स्मरण करके इसको आगे अपने जीवन में चलाना. इसका संकल्प करना. पोंगळ आनंद का दिन है, पोंगळ संकल्प का भी दिन है. सूर्य जैसे तपश्चर्या करता है, वैसे सबके साथ स्नेह मधुर संबंध रखना, सबकी गलतियों को क्षमा करना. और अपने लोगों को साथ रखना, अपने लोगों को शुभचिंतन करके सारा कर्म करना, यह तपस्या सालभर करनी. ऐसा पूरा अर्थ पोंगळ का तमिलनाडु में आने पर अनुभव होता है, तीन दिन. बाकी जगह एक ही दिन में थोड़ा-थोड़ा करते हैं. अर्थ तो यही है सर्वत्र. परंतु उसके प्रत्यक्ष आचरण के लिए कुछ प्रतीक रूप कार्यक्रम तीनों दिन यहां पर होता हुआ मैंने देखा. बहुत संतोष हुआ, बहुत उत्साह मिला, बहुत प्रेरणा मिली. तिरुपुर में भी और यहां पर भी. आज पर्व त्यौहार का दिन है, तो कहीं न कहीं करना ही है. तो अपने बंधुओं ने कहा कि आप यहां चलिए, तो मैं आपसे मिलने के लिए आया. मुझे नये अपने लोग, हैं तो पुराने ही अपने, लेकिन प्रत्यक्ष दर्शन उनका हुआ. इसलिए आप सब लोगों का मैं धन्यवाद करता हूं. फिर एक बार ‌आपका शुभचिंतन करता हूं, और मेरे शब्दों को विराम देता हूं.

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

15 + 1 =