विश्व को धर्म व एकता का संदेश देने का दायित्व भारत का है – डॉ. मोहन भागवत जी

द्वितीय वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस, शिकागो में सरसंघचालक जी के उद्बोधन के अंश

शिकागो. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हम विश्व को उत्तम बनाना चाहते हैं और हमारी प्रभुत्व की कोई आकांक्षा भी नहीं है. पूर्व में विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दू साम्राज्य थे, उन पर हिन्दू संस्कृति का प्रभाव आज भी विद्यमान है. और आश्चर्य है कि वहां के स्थानीय लोगों ने ही उसे पोषित किया है, व आगे बढ़ाया है. अन्य किसी भी शासन में ऐसा देखने को नहीं मिलता. हिन्दू संस्कृति का ये प्रभाव आक्रमण, उपनिवेशवाद, सांस्कृतिक संक्रमण या हमारी सर्वोत्तम होने की भावना के कारण नहीं था, हम अपने हृदय में जो अपनत्व, एकत्व का भाव लेकर गए, उसके कारण था. हममें क्षमता है, लेकिन उसके लिए हमें एकजुट होना होगा. हमारा समाज व राष्ट्र दबा कुचला, पराजित या गुलाम नहीं है.

सरसंघचालक जी शिकागो में आयोजित द्वितीय वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस के उद्घाटन सत्र में उपस्थित प्रतिनिधियों को संबोधित कर रहे थे. द्वितीय वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस का आयोजन शिकागो में स्वामी विवेकानंद जी के भाषण (सन् 1893) की 125वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में किया गया है.

उन्होंने कहा कि हिन्दू किसी का विरोध करने के लिए नहीं जीते, लेकिन कुछ लोग हैं जो हिन्दुओं का विरोध करते हैं. वे हमें नुकसान न पहुंचा पाएं, इसके लिए हमें खुद को तैयार करना होगा. संघ के प्रारंभिक दौर में स्वयंसेवक संपर्क के दौरान हिन्दुओं के संगठन की बात करते थे तो लोग कहते थे कि शेर कभी झुंड में नहीं चलते. लेकिन जंगली कुत्ते मिलकर उस अकेले जंगल के राजा शेर का भी शिकार कर लेते हैं, उसे समाप्त कर देते हैं, ये हम भूल गए. ये हमें नहीं भूलना चाहिए.

आदर्शवाद में कुछ भी गलत नहीं है. जीवन में नेतृत्व, विरोध, धैर्य आदि तमाम मानवीय गुणों को समझाने के लिए उन्होंने महाभारत की कथा का वर्णन किया और कहा कि इसकी हमें अत्यंत आवश्यकता है. हमारे मूल्य वैश्विक मूल्य हैं, जिसे हिन्दू मूल्य कहा जाता है. हिन्दू मूल्य ही हैं, जो सबके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेंगे – मनुष्य, समाज, प्रकृति. और विश्व को कल्याण के मार्ग पर बढ़ाना हिन्दू समाज, हिन्दू राष्ट्र (भारत) का दायित्व है. हिन्दू समाज उत्तम लोगों का समाज है, लेकिन हम एक साथ काम नहीं करते. हिन्दू समुदाय को आत्मसंतुष्ट होकर नहीं बैठ जाना चाहिए. हमारे विरोधी जानते हैं कि यह कार्यक्रम किया जा रहा है, लेकिन हमारे खुद के लोगों को इसकी जानकारी नहीं है. हमारे पास सबकुछ था, हमें सबकुछ मालूम था, लेकिन हम उसका अभ्यास करना भूल गए, हम एक साथ काम करना भी भूल गए.

सरसंघचालक जी ने कहा कि प्रत्येक राष्ट्र का एक जीवन प्रयोजन होता है, और जब समय व आवश्यकता होती है तो राष्ट्र का जन्म होता है. और जब उस प्रयोजन की आवश्यकता समाप्त होती है तो उस राष्ट्र का विलय हो जाता है. विश्व को धर्म व एकता की शिक्षा देने का कर्तव्य भारत देश (हिन्दुओं) का है, और विश्व के रहने तक हिन्दू समाज व भारत का अस्तित्व बना रहेगा. धार्मिक मूल्यों, सत्य का हमारे समाज में कभी अभाव नहीं हुआ. सभी स्थितियों में तथा हर काल में और आज भी समाज में आध्यात्मिक गुरू हैं, व रहे हैं.

भाग्य आपकी मेहनत से आपके पीछे आता है, मूल्य क्या हैं, आपके पास जो है, उन्हें कभी भूलना नहीं चाहिए. वे ही वैश्विक मूल्य हैं. हिन्दू समाज तभी आगे बढ़ सकता है, जब यह समाज के लिए काम करे, कुछ संगठन और दल या सरकार इसके लिए काम करें, इससे यह लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं है, हमें एकजुट होकर काम करने की जरूरत है. हिन्दू समाज में प्रतिभावान लोगों की संख्या अन्य में सबसे ज्यादा है, लेकिन वे कभी साथ नहीं आते हैं. हिन्दू हजारों वर्षों से प्रताड़ित हो रहे हैं क्योंकि वे अपने मूल सिद्धांतों का पालन करना और आध्यात्मिकता को भूल गए हैं. हिन्दू समाज के लिए आपसी समायोजन और एकजुटता बहुत आवश्यक है. पैसा ही सब कुछ नहीं होता. हमारे पास ज्ञान और बुद्धि है, लेकिन हमें अपने संस्कार नहीं भूलने चाहिए.

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

four × 4 =