आध्यात्मिकता केंद्रित जीवन दृष्टि भारत को हिंदू राष्ट्र बनाती है : मनमोहन वैद्य

जोधपुर, 2 अप्रैल। विश्व संवाद केंद्र जोधपुर द्वारा लघु उद्योग भारती परिसर में आयोजित एक दिवसीय सनसिटी कॉलम राइटर्स एंड स्कॉलर्स मीट के उद्घाटन सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डा• मनमोहन वैद्य ने कहा की भारत की पहचान इसका अद्वितीय आध्यात्मिक दृष्टिकोण है, कौशल के शिक्षण केंद्र भारत के घर थे जहां ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजा गया, भारत ने विश्व पटल पर उदारवादी, बौद्धिक और प्रगतिशील दृष्टिकोण से अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान निर्मित की, भारतीय संस्कृति गंगा है, जिसमें परोपकार है सहिष्णुता है, आध्यात्मिक लोकतंत्र भारत का मूल विषय है,

भारत की इसी पहचान को दुनिया में हिंदुत्व कहा जाता है, इसीलिए हिंदुत्व को हिंदुइज्म कहना गलत है यह हिन्दुनेस है
इज़्म या वाद वहाँ है जहां थोपने का कार्य रहा हो भारतीय जीवन दर्शन पाश्चात्य इज़्म या वाद को नकारता है, राष्ट्रीय होना गुणात्मक है भारत में राष्ट्र की अवधारणा समाज आधारित है

मार्क्सवादी चिंतन ने भारत के मूल दर्शन को भ्रमित करने का कुत्सित प्रयास किया है, भारत विविधताओं में एक संस्कृति का देश है उन्होंने यह भी कहा की जाति व्यवस्था देशकाल में रही है लेकिन जाति भेद का कोई शास्त्रीय आधार नहीं है, इससे पूर्व परिचय सत्र में प्रांत सह प्रचार प्रमुख मनमोहन पुरोहित ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की दूसरे सत्र में प्रतिभागी समूह परिचर्चा रखी गई थी जिसमें क्षेत्रीय सह प्रचार प्रमुख मनोज ने कहा की कार्यक्रम का उद्देश्य आपसी संवाद को बढ़ावा देने के साथ राष्ट्रीय विचार को प्रमुखता देने वाले विचारकों को मंच प्रदान करना है

चौथे सत्र में वरिष्ठ पत्रकार गोपाल शर्मा संस्थापक संपादक महानगर टाइम्स जयपुर ने अपने उद्बोधन में कहा की तथ्य के बिना किसी भी बात का महत्व नहीं होता, लेखन में तथ्यों का समावेश उसकी स्वीकार्यता को बढ़ाता है, उन्होंने लेखन श्रेणी को वर्गीकृत करते हुए कहा की एक श्रेणी के लोग केवल परनिंदा में समय व्यतीत करते हैं भारत के स्वभाव में परनिंदा नहीं है, हमारी संस्कृति अनूठी और विलक्षण है लेकिन विरोधी समूह ने इतिहास के ऐसे तथ्यों को चुना जिनसे वे भारत के एकीकृत स्वरूप को कमजोर कर सकते थे

पाँचवे और अंतिम सत्र में मुख्य वक्ता राजस्थान विश्वविद्यालय में कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो नंदकिशोर पांडेय ने धारणा एवं विमर्श पर अपना उद्बोधन देते हुए कहा की जब ब्रिटिश सत्ता के समय आंग्ल विद्वानों ने भारतीय भाषाओं लोक संस्कृति का व्यापक अध्ययन किया और उनके मूल में जाकर ऐसे तथ्यों को खोजा जिससे भारत की एकता प्रभावित हो, ऐसे साहित्यकारों, कवियों पर शोध कार्य किए गए जो भारतीय संस्कृति के किसी न किसी रूप के विरोध में थे, लेकिन वे भारतीय जीवन दर्शन के विराट स्वरूप को अधिक खंडित नहीं कर पाये उन्होंने कहा कि भारत को आचार्यों ने और बाद में संतों ने जोड़ा, आचार्य परम्परा में तात्त्विक दृष्टि से भेद हो सकता है लेकिन इनके द्वारा मूल तत्व के विवेचन में कोई भेद नहीं है, रामायण महाभारत जैसे ग्रंथों को मिथक कहना भी एक निरेटिव है उन्होंने कहा कि ऐसे निरेटिव की पहचान और उसका खंडन आवश्यक है ।

कार्यक्रम संयोजक सुनील बिश्नोई ने बताया कि कार्यक्रम में 90 विभिन्न अकादमिक श्रेणियों के प्रतिभागियों का चयन किया गया था जिनकी उपस्थिति शत प्रतिशत रही, कार्यक्रम के प्रारम्भ में प्राध्यापक श्रेणी के रतन सिंह, दिनेश चारण, डॉ महेश कुमार धायल एवं शोधार्थी श्रेणी के गोविंद राम, रघुवीर सिंह और नीरज जोशी को उत्कृष्ट श्रेणी लेखन के लिए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया ।
कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय कार्यवाह जसवंत जी खत्री, प्रांत संघचालक हरदयाल वर्मा, विश्व संवाद केंद्र के मंत्री हेमंत घोष के साथ प्रबंधन में विश्व संवाद केंद्र के कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

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