मोरबी दुर्घटना – बचाव व राहत कार्य के लिए सेवादूत बनकर पहुंचे संघ के 200 स्वयंसेवक

राजकोट. मोरबी दुर्घटना की सूचना मिलने के पश्चात कुछ ही समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 200 स्वयंसेवक घटनास्थल पर पहुंच गए थे और लगातार 12 घंटे बचाव व राहत कार्य में निरंतर लगे रहे. एनडीआरएफ, सेना और स्थानीय प्रशासन के कार्य में स्वयंसेवकों ने सहयोग किया.

31 अक्तूबर को मोरबी में मच्छू नदी पर बना पुल टूटने से 134 लोगों की मृत्यु हो गई, जबकि 200 से ज्यादा लोगों को बचा लिया गया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों और अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओं ने सेवा कार्य किया.

सौराष्ट्र प्रांत प्रचार प्रमुख पंकज भाई रावल ने बताया कि घटना शाम को लगभग साढ़े छह बजे घटी. उस समय मोरबी विभाग के सह कार्यवाह विपुल भाई घटनास्थाल से कुछ ही दूरी पर थे. उन्होंने घटना की स्थानीय अधिकारियों को जानकारी दी. इसके बाद 10 मिनट के अंदर स्वयंसेवक घटनास्थल पर पहुंच गए. कुछ ही देर में 200 स्वयंसेवक राहत और बचाव कार्य में लगे. स्वयंसेवकों ने एनडीआरएफ और सेना के लोगों के साथ लगातार 12 घंटे कार्य किया. जिला संघचालक ललित भाई, जिला कार्यवाह महेश भाई और विपुल भाई स्वयंसेवकों का मार्गदर्शन कर रहे थे.

स्वयंसेवकों ने डूबते हुए लोगों को बचाने में सहयोग के साथ ही शवों को भी नदी से निकाला. कुछ स्वयंसेवकों ने घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने में मदद की. स्वयंसेवकों ने जब वहां देखा कि मरीज की अपेक्षा चिकित्सक कम हैं, तो नेशनल मेडिकोज़ ऑर्गनाइजेशन (एनएमओ) और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) से जुड़े चिकित्सकों को फोन कर बुलाया. इसी बीच कुछ स्वयंसेवक नदी किनारे से सड़क तक शवों को लाने में लगे और कुछ उनके लिए रास्ता बनाने में जुटे. सबसे बड़ी समस्या थी कि जैसे-जैसे लोगों को घटना की जानकारी मिलती गई, वे लोग घटनास्थल पर पहुंच गए. जिसके चलते प्रशासन के सामने समस्या खड़ी हो गई, लोगों को संभालना चुनौती थी. स्वयंसेवकों ने व्यवस्था को संभाला. स्वयंसेवकों ने अपनों को खोने वालों को सांत्वना दी और शव को ससम्मान घर तक ले जाने की व्यवस्था की. स्वयंसेवकों ने अपने पैसे से कपड़े खरीदकर शवों को लपेटा और उन्हें उनके परिजनों के साथ उनके घर तक पहुंचाया. स्वयंसेवकों ने मुसलमानों के भी 37 शवों को निकाला और उनके रीति-रिवाज का पालन करते हुए उनके घर तक पहुंचाया. स्वयंसेवकों को विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और स्वामीनारायण संस्था के कार्यकर्ताओं का भी सराहनीय सहयोग मिला. स्वयंसेवकों के सहयोग से 180 से ज्यदा लोगों को जीवित निकाला गया, जबकि 134 शवों को नदी से निकालकर उनके घरों तक पहुंचाया गया.

 

 

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