तीन दिवसीय काशी शब्दोत्सव – 2023

वाराणसी, 11 फरवरी। विश्व संवाद केंद्र, काशी की ओर से रूद्राक्ष इण्टरनेशनल कन्वेंशन सेंटर, सिगरा, (वाराणसी) में आयोजित तीन दिवसीय काशी शब्दोत्सव – 2023 के दूसरे दिन कुल छः चर्चा सत्र आयोजित हुए। इन छः सत्रों में से एक सत्र काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शताब्दी भवन सभागार में सम्पन्न हुआ। इन छः सत्रों में हुए संवाद के समाचार संदर्भ निम्न है-

प्रथम सत्र – शिव और शक्ति – अभिव्यक्ति के विविध रूप
भारतीय परंपरा में गृहणी का ही अर्थ घर है- डॉ0 सुचेता परांजपे

काशी शब्दोत्सव समारोह में शिव और शक्ति अभिव्यक्ति के विविध रूप चर्चा सत्र में बोलते हुए विशिष्ट वक्ता संस्कृत की विद्वान डॉ0 सुचेता परांजपे ने कहा की शक्ति का मतलब है ऊर्जा। उन्होंने ऋग्वेद का उदाहरण देते हुए कहा कि एक समय था जब कन्याओं को वेदश्री कहा जाता था और ये कन्याएं पुरूषों के समकक्ष सभी कार्य करती थीं। भारतीय परंपरा में गृहणी का ही अर्थ घर है इसके बाद उन्होंने अथर्ववेद का उदाहरण देते हुए ‘‘ब्रह्मचर्येण कन्या’’ की बात कही। उन्होंने ‘‘गृहणी गृह मुच्यते, सर्वधर्म चारिणी’’ की बात करते हुए कहा कि एक स्त्री जिस भूमिका में काम करती है, उसे वही स्थान प्राप्त होता है।
मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ0 रजनीकांत ने कहा कि शिव और शक्ति को कला, संगीत के दृष्टिकोण से भी देखा जाता है। उन्होंने कहा काशी को भगवान शिव ने स्वयं बसाया है। जहां शान्तिचित व आनन्द है वहां शिव और शक्ति एक साथ है। काशी ही एक ऐसा नगर है जहां महाश्मशान पर भी होली खेली जाती है।
हमें शिव के समाजवाद पर चलना चाहिए दुनिया के तमाम देश आदि पुरूष शिव को आराध्य देव मानते है। भगवान शिव का मृदंग, डमरू व नटराज रूपी प्रतिमा दुनिया भर के कलाकारों के लिए अदभुत है। शिव और शक्ति को कला संगीत के नजरिये से भी देखा जाना चाहिए।
वक्ता लेखिका एवं संपादक सोनाली मिश्र ने साहित्य की बात करते हुए कहा कि शिव और शक्ति का साहित्य में भी विविध आयाम है। उन्होंने पितृ सत्तात्मक व्यवस्था को गलत आधार बताया। उन्होंने शिव और शक्ति की अवधारणा अनुशासन और संरक्षण से दिया। संगोष्ठी में उपस्थित लोगों ने विद्वानों से प्रश्नोत्तरी भी किया। शिव शक्ति की अभिव्यक्ति जीवन के जीवन के हर क्षेत्र में है हिन्दी साहित्य में स्त्रियों को लेकर ज्यादा बात हो शिव शक्ति का कांस्पेस्ट यूनिवर्सल है। फेमिनिज्म का अर्थ पुरूष विरोधी नहीं होना चाहिए वेसे ही एंटी फेमिनिज्म महिला विरोधी नहीं होना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन सुश्री शेफाली गणेश ने किया। सत्र के अन्त में वक्ताओं ने श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर में कहा कि शिव और शक्ति की अवधारणा नारी और पुरूष की समानता से युक्त है इस पर प्रश्न करना सर्वथा उचित है।

प्रथम सत्र (समानान्तर)   – भक्ति साहित्य-पराधीन सपनेहु सुख नाहीं
भक्ति साहित्य ने धर्म को युगानुरूप बनाया – प्रो0 नन्दकिशोर पाण्डेय

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शताब्दी सभागार में शब्दोत्सव समारोह में के भक्ति साहित्य-पराधीन सपनेहु सुख नाहीं चर्चा सत्र में बोलते हुए  मुख्य अतिथि नंदकिशोर पाण्डेय ने कहा कि भक्ति साहित्य ने देश को एक बनाने में मदद किया। भक्ति साहित्य ने से सभी लोगों को ईश्वर को जानने का अवसर दिया। भक्ति साहित्य ने धर्मो को युग के अनुरूप बनाया। श्रीरामचरित मानस जिसका उदाहरण है। सतीप्रथा यहाँ की परंपरा नहीं रही है इसका उदाहरण महाराज दशरथ के निधन पर कौशल्या, कैकयी और सुमित्रा को सती न होना है। उन्होंने महामना जी के दृष्टिकोण की चर्चा करते हुए कहा कि शिक्षा दृष्टि व राष्ट्र चेतना की जो सोच उस समय रखी थी वह आने वाले कल के लिए भी सभी अर्थों में प्रासंगिक हैं उन्होंने  धर्म विज्ञान, तकनीकी, महिला शिक्षा, कला, संगीत आदि के संरचना के प्रति मालवीय जी का दूरगामी सोच की परिणति है।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता मिथिलेश नन्दनी शरण ने कहा कि संस्कृतियां भाषा में सांस लेती है। किसी भी देश की यदि संस्कृति मलिन होती है तो उसकी भाषा भी मलिन हो जाएगी। भाषा के स्तर से किसी भी देश की संस्कृति की भव्यता को समझा जा सकता है। भगवान राम व कृष्ण के जन्म के समय नगर वासियों के आशीर्वाद प्रसंगो का जिक्र किया और शिवत्व की कठिनाई व मां पार्वती के विदाई का मार्मिक प्रसंग सुनाया। जो भी संसार में प्रकाशित होता है वह जलता है और दुआ भी छोड़ता है, ऐसे में महान संतों के तप को हमेशा याद रखना चाहिए। जिनके आशीर्वचनों से हम प्रकाशमान होने की गति पर हैं। वर्तमान घटनाक्रम में जब बाबा तुलसीदास के चौपाइयों परे ऐसे सवाल उठा रहे भारतीय नारियों के शिक्षा व ज्ञान पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम की अध्यक्षता 127 वर्षीय वयोवृद्ध पद्मश्री स्वामी शिवानंद महाराज ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 लहरी राम मीणा ने किया ।

द्वितीय सत्र – भारतीय इतिहास लेखन की विसंगतियां
राष्ट्रविरोधी शक्तियों द्वारा महाभारत के अस्तित्व पर प्रश्न उठाना अनुचित – डॉ0 नीरजा गुप्ता

वर्तमान में साँची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय की कुलपति नीरजा गुप्ता ने कहा कि लिखे हुए इतिहास का हम इसलिए विरोध करते है कि यह भारत की गौरव को बदल रहा है बल्कि राष्ट्रविरोधी काम कर रहा है इतिहास का पुर्नपाठ करना जरूरी है। यह राष्ट्रगौरव के लिए अत्यंत आवश्यक है। रामायण महाभारत के अस्तित्व को राष्ट्रविरोधी ताकते नकारने का प्रयास कर रही है।
कार्यक्रम में बोलते हुए वक्ता एवं लेखक रतन शारदा ने कहा कि भारत के इतिहास के अन्दर हमारे ज्ञान पंरपरा का जिक्र नहीं है। नये शोध का विरोध करने वाले आज भी है।
सत्र के वक्ता एवं सम्पादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि सबसे बड़ी विसंगति इतिहास लेखन में नही बल्कि हिस्ट्री राइटिंग में है। गलती ये है कि इतिहास को हम लोग हिस्ट्री मान लिए जबकि इतिहास वो होता है जो हुआ है जो देखा गया है उसे इतिहास लिखता है। भारत कभी भी भाषा के आधार पर नहीं बटा। संकट हमारे धर्म पर है संस्कृति पर है मंदिर पर है। ब्रिटिश ने हमें एक राज्य करने की कोशिश किया राष्ट्र के रूप् में हमें विभाजित कर दिया।

द्वितीय सत्र (समानान्तर) – देशाटन-एकात्म भारत का दर्शन
वेदों में है भारत के पर्यटन स्थलों का वर्णन – प्रो0 सच्चिदानन्द जोशी

विशिष्ट वक्ता एवं इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव प्रो0 सच्चिदानन्द जोशी ने कहा कि आदि गुरू शंकराचार्य ने पूरे भारत का भ्रमण किया। भारत सदा से देशाटन का स्थान रहा हैं। शंकराचार्य ने पूरे देश का भ्रमण किया, चिंतन और शास्त्रार्थ किया तथा देशाटन का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि वेदों में भारत के नौ अरण्य क्षेत्रों, पर्वतीय क्षेत्रों, नदियों आदि पर्यटन स्थलों का विस्तृत वर्णन है। यही भारत के पर्यटन का आधार है। गुरुनानक देव ने 38 हजार किलोमीटर यात्रा कर पूरे भारत में संदेश दिया और भारत का दर्शन किया। देश में कुम्भ पर, नर्मदा परिक्रमा एवं पण्डरपुर की यात्रा भी पर्यटन का आधार है। ये सभी अनन्तकाल से चली आ रही है। इसी क्रम में उन्होंने पण्डरपुर की यात्रा का वृत्तचित्र भी दिखाया।
समारोह की मुख्य अतिथि एवं प्रसिद्ध चिकित्सक एवं शिक्षाविद् सरोज चूडूमणि गोपाल ने कहा कि हमारा भारत सवर्णिम देश है। काशी एक अद्भूत नगरी है। जबतक हम यह देश न घूमे और न देखे तो जीवन अधूरा है। देशाटन को अपने जीवन का भाग जरूर बनाइये व्यर्थ विचारकों ने हमारे देश का और नुकशान किया है। विचार ही सबसे बड़ी शक्ति है।
इसी सत्र के विशिष्ट अतिथि एवं शिक्षाविद् नरेन्द्र पाठक ने कहा कि इतना सुंदर भौगोलिक परिसर हमारे भारत भूमि को मिला है। उन्होंने कहा की जब मैं आठवीं में था तो बताया गया की स्कूल का पिकनिक जा रहा हैं ये सुनकर हम खुश हुए तब पर्यटन का महत्व पता नहीं था। तब शिक्षक ने कहा था यह केवल मस्ती नहीं है, हम जहां जा रहे है वहां जाकर देखना है क्या है कैसे है लोग कसे सबका अवलोकन करना है आज मुझे एकहसास होता है की वे लघु पर्यटन शोध था। जब हम पर्यटन के लिए जाते है तो मन में देशभावना एक होती है चाहे जगह कोई भी हो। हमारे जो पर्यटक रहे जब तो जगह जगह गए, विदेश गए तो उन्होंने भारत को जोड़ने का काम किया। ये जो देशाटन है वो एक सूत्र में बांधकर रखने का कार्य करती है। वहीं प्रभात कुमार ने शंकराचार्य का उदाहरण देते हुए कहा कि देशाटन का प्रमाण बहुत प्राचीन काल से ही भारत में मिलता है। देशाटन एकात्मकता का परिचय देता है। एकात्मता केवल बात करने से नहीं भाव रखने से आती है। कार्यक्रम का संचालन प्रवेश कुमार श्रीवास्तव ने किया।

तृतीय सत्र – संस्कृति हिंदुत्व और आधुनिकता
वर्तमान में बढ़ रहा है हिन्दुत्व का प्रभाव – अरुण आनंद

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता, पत्रकार एवं लेखक अरुण आनंद ने कहा कि वर्तमान समय में शाश्वत मूल्यों का प्रवाह प्रसन्नता का विषय है। यह बात सही है कि वर्तमान में हिन्दुत्व का प्रभाव बढ़ा है। लेकिन हमलोग जो हिदुत्व को लेकर प्रवाह दे रहे वो कहीं न कहीं इसमं गलती है। जो कि आज के युवा को उत्तेजित करता है। हमारे पास मैटेरियल बहुत है लेकिन उसको कैसे संप्रेषित करे जिससे आम जन को भी वे बाते समझ में आए। आज एक बहुत बड़ा चैलेंज डिजिटल हिंदुत्व है। इंटरनेट पर जो नए नए वर्जन आ रहे है हम कैसे उसको समझेंगे। उसके समाहित करेंगे ये एक चैलेंज है। आज एक नए शब्दकोश की जरूरत है। जिससे आज की नई पीढ़ी को हिंदुत्व के बारे में बताया जा सके।
इस समारोह के अध्यक्षीय उदबोधन देते हुए पद्म भूषण देवी प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि शिव ज्येतिलिंग के रूप में काशी में विराजमान है और ज्योति का अर्थ प्रकाश से है। हमें सबसे पहले यह समझने की जरूरत है की हिदुत्व संस्कृति और आधुनिकता क्या है, संस्कृति क्या है और संस्कृति बोध क्या है। उन्होंने कहा कि हमारा परिवेष्ज्ञ, हमारा स्थान, हमारा देश ही हमारी संस्कृति है। इसमें अनुशासन व्यवहार ज्ञान इन सभी चीजों का बोध संस्कृति से मिलता है। हम हमारे संस्कारों से परिष्कृत होते है। हमारे यहां स्त्री को लेकरर तमाम राजनीतिक चर्चाए होती हैं। लेकिन हमारे यहां स्त्री को सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है। उन्होंने ‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमते तत्र देवता’’ का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि हमारा हिन्दुत्व केवल भारत में नही विश्व में है। सारे विश्व को ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में अगर प्रमाणिक ज्ञान प्राप्त करना हो तो हिंदुत्व के आधार पर ही किया जा सकता है। हिंदुत्व का अर्थ परिष्कृत ज्ञान से है। हमारा परिवेश ज्ञान और शास्त्र ह तो वैज्ञानिक है। हमें अपने हिन्दुत्व पर गर्व करना चाहिए।
कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता एवं गोविन्द वल्लभपन्त सामाजिक विज्ञान संस्थान के निदेशक बद्रीनारायण ने कहा कि हमारा दिमाग पश्चिमी संरचना से अभिभूत है। परंपरा परिवर्तित होती हरै आधुनिकता आगे की तरफ देखती है। लेकिन इस आधुनिकता मे ंहम मौलिकता को भूल जाते है। भारतीय समाज आधुनिकता के द्वंद समझने की क्षमता है। हिंदुत्व एक सनातन दर्शन है। जिसमें समाहन की बेहद क्षमता है।
इस क्रम में सत्र की वक्ता एवं रूस की विद्वान प्रो0 शांति श्री पं0 दुलिपुड़ी ने कहा कि हिंदू मूल्यों को परिभाषित करता है। हिंदू अरबिक से नहीं विष्णु पुराण से आया है। उन्होंने कहा कि मै स्त्रीवादी हूँ और इसके साथ उन्होंने द्रौपदी का उदाहरण देते हुए कहा कि पहली आधुनिक महिला थीं। सीता पहली स्त्रीवादी महिला थीं। हम मातृसत्तात्मक त्योहार के रूप में दशहरा को मनाते है। इसलिए हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। हमारी संस्कृति ही हमारा ताकत है। जब हम मौलिकता की बात करते हैं तब हम विविधता को उत्सव के रूप् में मानते हें। इस कार्यक्रम का संचालन अमित द्विवेदी ने किया।

तृतीय सत्र (समानान्तर) – भारतीय सिनेमा के विभिन्न दौर
वेब सीरीज भारतीय संस्कृति के विरुद्ध – डॉ. चन्द्र प्रकाश द्विवेदी

इस सत्र के मुख्य अतिथि एवं फिल्म निर्माता-निर्देशक डॉ. चन्द्र प्रकाश द्विवेदी ने कहा कि वर्तमान समय में सिनेमा से अधिक प्रभाव सोशल मीडिया का हो गया है। इसी के साथ-साथ उन्होंने चिन्ता व्यक्त किया कि वेब सिरीज में भारतीय संस्कृति के विरुद्ध बड़ा असत्य परोसा जा रहा है, इसे भी रोकना जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारतीय सिनेमा द्वारा साजिश के अन्तर्गत प्रस्तुत भारत विरोधी फिलमों को दर्शक मिल रहा है। जबकि भारतीय परम्परा पर बनने वाले सिनेमा को दर्शको का अभाव हो रहा है। इस सन्दर्भ में महर्षि ब्यास का यह कथन सही है कि वेदों को भी अशिक्षित एवं मुर्खों से डर लगता है। उन्होंने आह्वान किया कि दर्शक राष्ट्रवादी फिल्मों को समर्थन दें जिससे कि हिन्दुत्व आधारित फिल्में बन सके। भारतीय नैतिकता, परम्परा को आधार बनाकर भारतीय फिल्म निर्माताओं को फिल्में बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें सिनेमा में संघर्ष नहीं समन्वय खोजना चाहिए क्योंकि भारत का दृष्टिकोण भी संघर्ष नही, समन्वय है।
सत्र के वक्ता एवं सम्पादक अनन्त विजय ने कहा कि वर्तमान समय में पौराणिकता से अधिक आतंकवाद एवं साम्प्रदायिकता पर अधिक फिल्में बन रही है। शायद इसीलिए महात्मा गांधी ने अपने जीवन में फिल्म देखने से परहेज किया। सरदार पटेल ने अपने समय से राष्ट्रवादी फिल्मों को प्रोत्साहित किया।
वी. शांताराम ने सामाजिक समस्या पर फिल्म बनायी। उसके पश्चात सामाजिक समस्याओं पर दौर चला। वर्तमान समय में सामाजिक समस्याओं एवं सुधार की जगह भारत विरोधी फिल्में बन रहीं है। जो खतरनाक है। उन्होने कहा कि निर्माता और निर्देशक निरन्तर संघर्ष करते हुए फिल्में बनाते हैं और दर्शकों का समर्थन मिलने पर ही उनकी वास्तविक सफलता होती है। उन्होंने कहा कि अच्छी फिल्में आत्मबल की देवतक होती हैं।
सत्र के वक्ता एवं फिल्म निर्माता-निर्देशक ओम राउत ने कहा कि वर्तमान समय में पौराणिक फिल्म बनाना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि उस समय का वातावरण, पात्र, परिवेश बनाना एक चुनौती होती है। उस चुनौती की प्रक्रिया वर्तमान तकनीकी से ही सम्भव हो सकी है। उन्होंने कहा कि रामायण का चरित्र अनन्त है। उसे सम्पूर्ण रूप में एक साथ पर्दे पर लाना कठिन है। रामायण के सन्दर्भ में समझ अवस्था के साथ बदलती है। रामायण के सहारे सृष्टि के क्रम को समझ सकते हैं। इसलिए रामायण एवं पौराणिक कथा सन्दर्भ पर फिल्में आवश्यक है। उन्होंने कहा कि भारतीय स्वाभिमान एवं सेना के शौर्य आदि विषयों पर फिल्म बनाने के लिए बड़ी कानूनी बाधाएं आती हैं, जिसे हटाना चाहिए।
सत्र के अध्यक्ष पद्मश्री शिवनाथ मिश्र ने कहा कि शास्त्रीय संगीत आधारित धार्मिक फिल्मों का निर्माण होना चाहिए। जो इस समय में नहीं हो रहा है। इस सत्र का संचालन इन्दिरा फाइल्स के लेखक विष्णु शर्मा ने किया। इस सत्र के अतिथियों का स्वागत डॉ.ज्ञानप्रकाश मिश्र, आशुतोष पाण्डेय एवं अंकित दुबे ने किया।

विशेष – सभी सत्रों के प्रारम्भ में बासुरी वादन का आयेजन किया गया जिसमें पं0 राजेन्द्र प्रसन्ना के शिष्य शिवम बनारसी ने अपनी प्रस्तुती से समा बांधा। इसके बाद तबले पर बनारस घराने के युवा तबलावादक श्रीकांत मिश्र ने प्रस्तुति दी।

काशी शब्दोत्सव – 2023 स्मारिका का लोकार्पण
विश्व संवाद केन्द्र काशी की ओर से 11 फरवरी 2023 के रूद्राक्ष इण्टरनेशनल कन्वेंशन सेंटर, सिगरा, वाराणसी में आयोजित तीन दिवसीय समारोह के अन्तिम सत्र में प्रो. ओम प्रकाश सिंह, पूर्व निदेशक- मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान (काशी विद्यापीठ) द्वारा संपादित काशी शब्दोत्सव – 2023 स्मारिका का लोकार्पण हुआ। उक्त स्मारिका में कुल 14 लेख प्रकाशित है। जिसमें महामहोपाध्याय डॉ0 गोपीनाथ कविराज, डॉ0 भगवान दास, डॉ0 विद्यानिवास मिश्र, जयशंकर प्रसाद, वासुदेव उबेराय, द्वारा काशी की महिमा पर लिखे गये है। स्मारिका के सम्पादक मण्डल में प्रो0 भारतेन्दु कुमार सिंह, प्रो0 शैलेश कुमार मिश्र, प्रो0मनीषा मेहरोत्रा, डा0 लहरी राम मीणा, डॉ0 अमित कुमार उपाध्याय शामिल है। इस पत्रिका के प्रकाशन मण्डल के सदस्य डॉ.हरेन्द्र राय एवं बंशीधर दुबे हैं। उक्त स्मारिका 100 पृष्ठ की हैं। स्मारिका का लोकार्पण निर्माता-निर्देशक डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी ने किया। लोकार्पण समारोह में मंच पर पद्मश्री शिवनाथ मिश्र, ओम राउत, अनंत विजय, नरेन्द्र ठाकुर जी (अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख) उपस्थित थे। लोकार्पण समारोह का संचालन विष्णु शर्मा, ने किया।

इंदिरा फाइल्स पुस्तक का लोकार्पण
काशी शब्दोत्सव -2023 में दिनांक 11 फरवरी 2023 के अन्तिम सत्र में विष्णु शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक ‘इंदिरा फाइल्स’ का लोकार्पण श्री चन्द्र प्रकाश द्विवेदी ने किया। इस अवसर पर मंच पर पुस्तक के लेखक विष्णु शर्मा, पद्मश्री शिवनाथ मिश्र, चन्द्र प्रकाश द्विवेदी, ओम राउत, अनंत विजय, नरेन्द्र ठाकुर जी (अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख), प्रो0 ओम प्रकाश सिंह आदि उपस्थित रहे।
इस पुस्तक में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से जुड़ी जीवन और कृतित्व के बारे में चर्चा की गई है। इसमें 50 अध्याय है। जिसका संक्षिप्त विवरण निम्न है-

पुस्तक का नाम – इंदिरा फाइल्स
लेखक का नाम – विष्णु शर्मा
प्रकाशक – ज्ञानगंगा, नई दिल्ली
मूल्य – 450रू
प्रकाशन वर्ष – 2023 प्रथम संस्करण  

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