दुष्प्रचार की साजिश

obama-modi3ओबामा का यह बयान तथ्यों पर आधारित न होकर उस दुष्प्रचार पर आधारित है जो सुनियोजित ढंग से भारतीय राज्य और समाज को बदनाम करने के लिए किया जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में भारत में ऐसी कौन सी घटना घटी है जो कि अमरीकी राष्ट्रपति और व्हाइट हाउस को आतंकित कर रही है? हाल में जो घटनाएं घटी हैं, उनमें दिल्ली के 5 चर्चों पर हमले की घटनाएं हैं। घटनाओं को देखने पर पता चलता है कि हमले की ये घटनाएं सुनियोजित सामूहिक हमला न होकर लुकछुप कर की गईं वारदातें थीं। इसलिए हमले की ये घटनाएं साजिश अधिक नजर आती हैं। इन हमलों की न तो अब तक किसी समूह ने जिम्मेदारी ली है न ही ऐसी किसी भावी हमले की धमकी दी गई है। इसलिए हमले की ये घटनाएं दुष्प्रचार और ध्रुवीकरण की कोशिश के तहत किए गए प्रयास ही अधिक लगते हैं।

वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में 2001 में बैंगलोर में दो चर्चों पर भयानक हमले हुए थे। तब भी यही कहा गया था कि भाजपा सरकार की सरपरस्ती की वजह से ही ये हमले संभव हुए। जाँच-पड़ताल पर पता चला कि हमले की इन वारदातों में दिनदार अंजुमन नामक एक पाकिस्तानी संगठन का हाथ था। इसी तरह झाबुआ में 4 ‘ननों’ पर हमले को भी इसी तरह से प्रचारित किया गया था। पर जिन 18 लोगों पर आरोप साबित हुए वे सभी ईसाई थे। अगस्त 2009 में मैंगलोर में चर्च की संपत्ति नष्ट की गई। इस वारदात में पकडे गए सभी आरोपी ईसाई थे जिन्होंने यह स्वीकार किया कि उन्होंने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को अंजाम देने के लिए ही यह जघन्य कृत्य किया था।

ओबामा यह भी भूल गए कि अमरीका में ही कुछ समय पूर्व कुरान जलाई गई थी। एक सिख पर सिर्फ इसलिए हमला हुआ था कि वह मुस्लिम जैसा दिखता था। काले लोगों के साथ अमरीका में जो अपमानजनक व्यवहार होता है वह लिंकन के सपनों की हत्या जैसा ही है। अगर आज लिंकन जिंदा होते तो वे इराक, सीरिया आदि हिस्सों में अमरीकी कृत्यों पर शर्मिंदगी महसूस कर रहे होते। भारत को अमरीका से सांप्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्षता पर सीख लेने की जरुरत नहीं है। भारत में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री किसी धार्मिक ग्रंथ पर हाथ रखकर शपथ नहीं लेते वरन संविधान पर हाथ रखकर सबक लेते हैं। बाइबिल पर हाथ रखकर राष्ट्रपति की शपथ लेने वाले ओबामा को भारत को बहुसांस्कृतिकता पर भाषण देने की जरुरत नहीं है।

(प्रो. राकेश सिन्हा, इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन)

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