आध्यात्मिक एवं सेवा भावी 113 संस्थाओं का गाजियाबाद में संगम

हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला- 2016

गाजियाबाद. प्राणी मात्र के कल्याण के लिये हिन्दू समाज के अनेक धार्मिक व सामाजिक संगठन सैकड़ों प्रकार के सेवा कार्य चला रहे हैं. ऐसे ही सेवा कार्यों को समाज के सामने प्रस्तुत करने के लिये हिन्दू अध्यात्म एवं सेवा मेला-2016 का आयोजन गाजियाबाद में किया गया. मेले में ऐसे सभी धार्मिक, सामाजिक संगठनों के सेवा कार्यों को प्रदर्शनी के रूप में दर्शाया गया. गायत्री परिवार (हरिद्वार), भारत स्वाभिमानimg_20161128_135020-300x200 ट्रस्ट पतंजलि योगपीठ (हरिद्वार), श्री रामकृष्ण मठ, माता अमृतानन्दमयी ट्रस्ट, आर्ट ऑफ लिविंग, प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, श्री स्वामीनारायण संस्थान, इस्कॉन जैसे विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं के साथ ही दिव्य प्रेम सेवा मिशन, संकल्प, वात्सल्य ग्राम, सेवा भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, नारायण सेवा संस्थान, मिशन स्वस्थ भारत आदि 113 संस्थाओं की गौरवमयी उपस्थिति रही.

18 नवम्बर को मेले में आचार्य वन्दन एवं गंगा गऊ वृक्ष पूजन मुख्य कार्यक्रम रहे. आचार्य वन्दन कार्यक्रम में विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्राओं ने अपने शिक्षकों को माला पहना कर उनका वंदन किया. पूज्य स्वामी रामाधाराचार्य जी महाराज एवं पूज्य स्वामी गोविन्दानन्द तीर्थ जी महाराज ने कार्यक्रम में आए गुरु एवं शिष्यों को सम्बोधित किया. संध्या समय गौ पूजन किया गया और गंगा आरती गायी गई, जिसके माध्यम से लोगों को गौ, गंगा और पर्यावरण संरक्षण का आह्नान किया गया.

मेले का शुभारम्भ करते हुए मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि हिन्दू समाज हजारों वर्षों से इस आध्यात्मिक भाव को लेकर जीता आया है कि सृष्टि में सब कुछ ईश्वर का ही है और उसे विनम्र भाव से ईश्वर के चरणों में ही समर्पित कर देना चाहिये. हमारी सेवा के पीछे यही आध्यात्मिक दर्शन है. जब हम किसी की सेवा करते हैं तो साक्षात् परमात्मा की ही सेवा करते हैं. और किसी दूसरे की नहीं, हम तो अपनी ही सेवा करते हैं. क्योंकि हम सभी में एक ही परमात्मा है. हमारे देश में मदन मोहन मालवीय जी जैसे अनेक उदाहरण हैं. मालवीय जी ने गरीब परिवार में जन्म लिया. लेकिन अपने परिश्रम से एक अच्छे बैरिस्टर बने. सन् 1911 में उनकी प्रतिमाह आय 11000 रुपये थी. लेकिन हिन्दू समाज को अच्छी शिक्षा, अच्छे संस्कार मिलने चाहिये, इसीलिये वकालत छोड़कर अपना लक्ष्य पूरा करने निकल पड़े. भिक्षावृत्ति से जो मिलता था, उसी का भोजन करते थे. नयी पीढ़ी को संस्कारित करने के लिये ज्ञान मंदिर खड़ा किया. उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से आज हमारे समाज में यह भाव कम होता जा रहा है. इसीलिये समाज में सेवा भाव की कमी और स्वार्थ का भाव बढ़ रहा है. उन्होंने कार्यक्रम में आए सभी लोगों को संकल्प कराया कि हम अपनी संतानों का अच्छे संस्कारों के साथ पालन-पोषण करेंगे और अपने दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता व बुजुर्गों की सेवा करेंगे और ऐसा समय न आए कि उन्हें वृद्धाश्रम में जाना पड़े.

19 नवम्बर को मेले में मातृ शक्ति दिवस मनाया गया. कन्या वंदन एवं मातृ सम्मेलन मेले का आकर्षण रहे. कन्या वंदन कार्यक्रम में बालकों ने 450 से भी अधिक कन्याओं के पवित्र गंगाजल से चरण धोए एवं तिलक लगाकर व पुष्प अर्पित कर उनका पूजन किया. कार्यक्रम से समाज को एक संदेश देने की कोशिश की गई कि हिन्दू संस्कृति में कन्याओं का विशेष पूजनीय स्थान है. मातृ सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए पूज्य साध्वी संतोषी माता ने कहा कि कन्या का जन्म कोई अभिशाप नहीं, बल्कि वरदान है. पूरा विश्व आज कन्याओं की धुरी पर ही टिका है. कन्या के बिना सृष्टि की परिकल्पना भी असंभव है. मेले में प्रत्येक रात्रि सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हुआ.

विशाल सामाजिक समरसता सम्मेलन

मेले में 20 नवम्बर को विशाल सामाजिक समरसता सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन में वाल्मीकि आश्रम हरिद्वार से पधारे पूज्य संत मानदास जी महाराज ने कहा कि रामायण मानव जीवन का श्रृंगार है. हमारे लिये आदर्श के रूप में भगवान राम से बड़ा कौन है? राम के व्यवहार में सर्वत्र समरसता का दर्शन होता है. वे गुह निषाद, जटायु, शबरी, वानर, अहिल्या आदि सबको साथ लेकर चले. क्या हमको राम के आचरण का अनुसरण नहीं करना चाहिए. राम ने शापित अहिल्या को भी स्वीकार किया, भेदभाव के विरुद्ध लड़ाई लड़ी. क्या समाज को जाति-पाति में बांटने वाले हम लोग राम भक्त कहलाए जा सकते हैं ? हमारे अन्य भगवान भी समरसता का संदेश देते हैं. भगवान शिव तो समरसता के महादेव हैं. उनकी बारात में (भक्तों में) तो सभी जातियाँ हैं. श्रीकृष्ण भी ग्वालों के संग खेलते हैं, खाते-पीते हैं. वे भी समरसता के प्रदर्शक हैं. हमारे व्यवसाय अलग-अलग हो सकते हैं. लेकिन हिन्दू समाज एक परिवार है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक आलोक कुमार जी ने कहा कि प्राचीन काल में जाति वर्ण व्यवस्था का रूप कट्टरतापूर्ण नहीं था. हमारे बहुत से पवित्र ग्रंथों की रचना ब्राह्मणेत्तर जातियों के महापुरुषों ने की है. रामायण की रचना वाल्मीकि, पुराण-वेद व्यास, पुराणों के वाचक- सूत जी और हमारे संविधान की रचना भी डॉ. अम्बेडकर जी द्वारा की गई. वर्तमान में जातियों में दंभ और छुआछूत हिन्दू समाज के लिये अभिशाप है. समय की आवश्यकता तथा धर्म सिद्धांत के अनुसार इसे समाप्त करना ही होगा. ब्रह्मलीन देवरहा बाबा ने कहा था ”हिन्दू समाज गुलाम हुआ, मंदिर तोड़े गये, धर्मग्रंथ जलाये गये, धर्मान्तरित किये गये, किस पाप के कारण, छुआछूत के घोर पाप के कारण.

मुख्य वक्ता विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय महामंत्री चम्पतराय जी ने कहा कि समरसता सनातन धर्म का वैशिष्टय है. भक्तिकाल के संतों का उल्लेख करते हुए कहा कि जगद्गुरु रामानुजाचार्य ने आत्मकल्याण को त्याग कर सबके कल्याण के लिये गुरु मंत्र का घोष किया. सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने लोक भाषा में धर्म साहित्य लिखा. हमारे धर्मशास्त्रों में वर्णित सिद्धांतों तथा महापुरुषों के आचरण में समरसता तत्व व्यवहार की कमी नहीं है. ऐसा भी ज्ञात होता है कि छठी शताब्दी तक यह समस्या नहीं थी. लेकिन आज समरसता की समस्या लौकिक व्यवहार की समस्या है. यह मेला हिन्दू समाज की सेवा, समरसता स्वाभाविक वृत्ति का सामूहिक दिग्दर्शन है.

सम्मेलन को अनेक अन्य महापुरुष संतों ने भी सम्बोधित किया. सम्मेलन में पाक्षिक जागरण पत्र राष्ट्रदेव पत्रिका के सामाजिक समरसता विशेषांक का विमोचन भी किया गया.

मेले में मातृ-पितृ वन्दन कार्यक्रम में नेशनल बुक ट्रस्ट के चेयरमैन बलदेव भाई जी ने माता-पिता और बच्चों के बीच कमजोर हो रही सम्बन्धों की डोर को समाज के लिये घातक बताया. उन्होंने कहा कि इसी के कारण परिवार टूट रहे हैं और अनाथ आश्रम और वृद्धाश्रम बढ़ रहे हैं. मेले का समापन परमवीर वन्दन कार्यक्रम के साथ हुआ.

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