हम अपनी श्रेष्ठ मान्यताओं को ना छोडे—डॉ.कृष्णगोपाल जी

कार्यक्रम को संबोधित करते सह—सरकार्यवाह डॉ.कृष्णगोपाल जी

कार्यक्रम को संबोधित करते सह—सरकार्यवाह डॉ.कृष्णगोपाल जी

विसंकेजयपुर
जयपुर,29 नवम्बर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह—सरकार्यवाह डॉ.कृष्णगोपाल जी ने कहा कि हम पाश्चात्य संस्कृति से जो उपयोगी हो वे ले लेकिन अपनी श्रेष्ठ मान्यता,पद्धितयां, दर्शन आदि को भी नहीं छोडे। अगर हम ऐसा करते रहेंगे तो बचे रहेंगे। यह दर्शन वर्षों पहले पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी हमको दे गए थे। यह बात डॉ.कृष्णगोपाल जी मंगलवार को जयपुर स्थित बिडला सभागार में एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान, जयपुर की ओर से आयोजित दीनदयाल स्मृति व्याख्यान—2016 कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बोल रहे थे। ‘दीनदयाल संपूर्ण वांग्मय की प्रासंगिता’विषयक इस कार्यक्रम में डॉ.कृष्णगोपाल जी मुख्य वक्ता थे।
उन्होंने कहा कि दूसरे देशों से आई व्यवस्था हमको परेशान कर रही है। हम सामर्थ्यवान तो हुए लेकिन एकांकी हो गए। पहले गांवों में सुख—दु:ख के अवसर पर लोग एकत्रित हुआ करते थे। पूरा गांव सामूहिक था लेकिन वर्तमान शिक्षा ने बहुत दिया लेकिन काफी हमसे छीना भी। मूल्यहीन शिक्षा ने हमको एकल बना दिया। महानगरों में नीचे फ्लैट में रहनेवाला अपने उपर रहनेवालें का नाम तक नहीं जानता है। इनसब का जब विचार करते हैं तो पंडित दीनदयाल जी का सुझाया दर्शन याद आता है। उन्होंने कहा था कि हमें पाश्चात्य संस्कृति से लेना चाहिए लेकिन अपनी पूर्ण प्रणाणिक बातों का बराबर पालन करते हुए।
उन्होंने पं.दीनदयाल जी के जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि वे न केवल दूरदृष्टा थे बल्कि अनथक परिश्रमी भी थी। उन्होंने कार्यकर्ताओं को गढा। उन्हें स्वार्थ के लिए नहीं परमार्थ के लिए कार्य करने की सीख दी। वे अभावों में कार्यकर्ताओं को भेजकर उन्हें निखारने का काम करते थे। भारत यानी आराध्य है। यह भूमि का टूकडा मात्र नहीं है। इसे स्थापित किया गया है। यहां एकता भिन्न प्रकार की है। यह सब बातें पंडित उपाध्याय पर निकाले गए सम्पूर्ण वांग्मय के पन्द्रह खण्डों को पढने को मिल सकेगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता राजस्थान प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने की। मुख्यमंत्री राजे एवं एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान, जयपुर के अध्यक्ष डॉ.महेशचन्द्र शर्मा ने भी पंडित दीनदयाल जी पर विचार रखे। कार्यक्रम के दौरान पन्द्रह खण्डों में प्रकाशित ‘दीनदयाल सम्पूर्ण वांग्मय की प्रासंगिता’ नामक पुस्तक का विमोचन 15228070_1174397872650727_1811705804_nभी किया गया।

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