नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि आचार्य अभिनवगुप्त के अनुसार धर्म की रक्षा के लिए शास्त्र के साथ कभी-कभी शस्त्र की भी आवश्यकता पड़ती है. शस्त्र की आवश्यकता शास्त्र के अनुसार दिखाए मार्ग पर लाने के लिए पड़ती है. भारत वासियों के मन में पिछले कई दिनों से जो इच्छा थी, वो आज पूरी हो गयी. इसके लिए देश की सेना धन्यवाद की पात्र है. सरसंघचालक जी आचार्य अभिनवगुप्त सहस्राब्दी समारोह समिति द्वारा दिल्ली में आयोजित अभिनव समागम में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि अभिनवगुप्त जी की जन्म सहस्राब्दी वर्ष मनाने का उद्देश्य यही है कि हम अपने महान आचार्यों द्वारा बताए ज्ञान के प्रति श्रद्धा भाव जागृत करें. अपने आचरण तथा मन से हर प्रकार के भेद को मिटाकर एक दूसरे के प्रति करुणा का भाव जागृत करें.
सरसंघचालक जी ने कहा कि अभिनवगुप्त का दर्शन विविधता में एकता का परिचायक है. उनकी सभी कृतियों में यह मूल रहा है कि विविधता का साक्षात्कार करना चाहिए. विविधता को जानना और उसके उपयोग से एकता के मानस को समझना ही ज्ञान का मूल है. एकता से ही सबका सृजन हुआ है, हमारे आचार्यों ने इस बात को अपने अनुभव से प्रसूत भी किया है. वसुधैव कुटुम्बम का यथार्थ भी यही है और अभिनवगुप्त का दर्शन भी.
डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हमारी आँखों में भेद देखने की आदत हो गयी है. जबकि आचार्य अभिनवगुप्त कहते रहे कि भेदों के परे देखना ही सत्य है. सत्य यह नहीं कि हम किस प्रकार से लोगों से अलग देखते हैं, बल्कि हमारी असली पहचान भारतीयता है और इसी भाव में हम मानवों को विश्व बंधुत्व के रूप में देखते हैं. ज्ञान की साधना लगातार प्रयास करते रहने में है. सत्य की उपासना करुणा के साथ करने वाला ही ज्ञान का वास्तविक सिद्धा होता है. बिना करुणा के सत्य की साधना का कोई औचित्य ही नहीं है. शुद्ध मन ज्ञान की तपस्या की भारत की संकल्पना को साकार करना है. सरसंघचालक जी ने कहा कि सिद्धांत के पथ पर जो चले, वही आचार्य होता है. अभिनवगुप्त जी ने ज्ञान और भाव को एक करके देखा है. अनुभव के जीवन मार्ग का पता चलना ही ज्ञान है. पाकिस्तान जनित आतंकी हमलों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आतंक को उत्तर मिलना चाहिए. ऐसा देश के युवाओं के मन में मंथन चल रहा था और जिसकी आशा थी, वो हो भी गया.
आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर जी ने कहा कि शास्त्र और शस्त्र दोनों से ही देश की रक्षा होती है, जो आज हमारे देश में दिख रहा है, सर्जिकल हमला प्रशंसनीय है. समय-समय पर प्रतिकार जरूरी होता है. जो राष्ट्र शस्त्र से संरक्षित है, वहां शास्त्र पर चिंतन किया जा सकता है. आज देश में युवा जोश और अनुभव का होश दोनों देखने को मिल रहा है. आचार्य अभिनवगुप्त की जन्म सहस्राब्दी मनाने का उद्देश्य यही है कि हम उनके ज्ञान का पांडित्व अपने जीवन में उतारें. आचार्य अभिनवगुप्त जी के जीवन में जो कला, भाव, ज्ञान रचनात्मकता दिखती है, वो मनुष्य को एक शिखर पर ले जाती है. अर्थात जीवन जीने की कला सिखलाती है.
कार्यक्रम की प्रस्तावना और आचार्य अभिनवगुप्त के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. कपिल कपूर ने कहा कि पूरा देश हनुमान सिंड्रोम से ग्रसित है. देशवासियों के पास शक्ति तो है, पर उन्हें उसका आभास नहीं है. ऐसे में लोगों को जागृत करने के लिए संतों का आगमन होता है. अभिनवगुप्त भी ज्ञान के प्रवाह के लिए जन्मे और सत्य की साधना का पथ बतलाया. हमारा देश एकल साधना पर आधारित है और हमारी एकल चेतना ज्ञान परक है.
कार्यक्रम में पद्मश्री जवाहरलाल कौल द्वारा लिखित एवं उर्दू में अनुवादित अभिनवगुप्त और शैव दर्शन का पुनरोदय, डॉ. जयप्रकाश सिंह द्वारा लिखित संचारविद अभिनवगुप्त, डॉ. जीतराम भट्ट द्वारा संकलित अभिनवसूक्ति शतकम और भैरवस्त्रोत सहित पांच पुस्तकों का विमोचन किया गया. इसके साथ ही आचार्य अभिनवगुप्त के व्यक्तित्व, कृतित्व एवं दर्शन पर डॉ. रजनीश शुक्ला द्वारा संकलित एक संग्रहनीय विशेषांक ‘प्रत्यभिज्ञान’ का भी विमोचन हुआ.
जवाहरलाल नेहरु इंडोर स्टेडियम में आयोजित आचार्य अभिनवगुप्त की जन्म सहस्त्राब्दी उद्घाटन समारोह का सञ्चालन जम्मू-काश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष भटनागर ने किया और आभार ज्ञापन पद्मश्री जवाहरलाल कौल ने किया. कार्यक्रम का शुभारम्भ भारत माता और आचार्य अभिनवगुप्त के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ. कार्यक्रम में आचार्य अभिनवगुप्त पर आधारित एक लघु वृत्तचित्र का भी प्रदर्शन हुआ. कार्यक्रम में मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय जी, अ.भा. सह संपर्क प्रमुख अरुण कुमार जी, विश्व हिन्दू परिषद् के महामंत्री दिनेश चन्द्र जी, दिल्ली प्रान्त संघचालक कुलभूषण आहूजा, सह संघचालक आलोक कुमार जी सहित गणमान्यजन उफस्थित थे.
आचार्य अभिनवगुप्त का जन्म दसवीं शताब्दी के मध्य कश्मीर में हुआ. वे कश्मीर शैव दर्शन के प्रखर विद्वान और भारत के एक महान दार्शनिक थे. आगम एवं प्रत्यभिज्ञा-दर्शन के प्रतिनिधि आचार्य होने के साथ ही वे साहित्य जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते थे. परमार्थ, प्रत्यभिज्ञा विमर्शिनी, गीतार्थ संग्रह जैसे ग्रंथों की रचना करने के साथ ही उन्होंने भरतमुनि के नाट्यशास्त्र तथा आनंदवर्धन के ध्वन्यालोक पर टीका भी की, जो आज कालजयी कृतियों में गिनी जाती है. मान्यता है कि आज से एक हजार साल पहले अभिनवगुप्त अपने 1200 शिष्यों के साथ शिव-स्तुति करते हुए कश्मीर में बड़गाम के निकट बीरवा नामक ग्राम में स्थित एक गुफा में शिवलीन हुए थे. वर्तमान में इटली, ब्रिटेन, अमेरिका, फ़्रांस सहित विश्व के पचास से अधिक विश्वविद्यालयों में अभिनवगुप्त पर शोध कार्य चल रहा है. अभिनवगुप्त ने लगभग 42 पुस्तकें लिखीं थी, लेकिन आज उनमें से कई तो उपलब्ध ही नहीं हैं. कुछ अधूरी पांडुलिपियाँ जरूर मिली हैं. तंत्र और शैव दर्शन के बारे में उन के प्रमुख ग्रंथों में तन्त्रालोक और लाघवी और बृहत विमर्शिनी सबसे महत्वपूर्ण हैं. तंत्रालोक तंत्र और शैव साधना पर विश्वकोषीय आकर का विशाल ग्रन्थ है. इसी विषय को कम शब्दों तथा सरल भाषा में समझाने के लिए उन्होंने ‘तंत्रसार’ नाम से एक छोटा ग्रन्थ लिखा. इसके अतिरिक्त कुल परम्परा पर लिखी मालिनीविजयावार्तिका और परात्रिशिकाविवृति उनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं.