जयपुर (विसंकें). राजनीतिक विश्लेषक एवं पाकिस्तानी मामलों के विशेषज्ञ पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने कहा कि हमारे समक्ष जो इतिहास रखा जा रहा है, वह सत्य के निकट नहीं है. शिक्षा पद्धति और इतिहास हमें भ्रम में रखे हुए है. जो हमें आजादी मिली है, वह वास्तव में आजादी न होकर शक्ति-सत्ता का हस्तांतरण मात्र है. सत्ता आएगी-जाएगी, लेकिन समाज स्थिर है. अब समय आ गया है कि समाज उठ खड़ा हो और सत्ता चलाने वालों से प्रश्न करे. पुष्पेंद्र जी स्व. दत्ताजी उनगॉंवकर स्मृति सेवा न्यास धार द्वारा आयोजित दो दिवसीय राजाभोज स्मृति व्याख्यानमाला के पहले दिन कश्मीरी आतंकवाद और भारत के सामने चुनौती विषय पर संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि बहुसंख्यक (हिन्दू) समाज आज भी ज्यादा सहिष्णु है. भारत जैसा सहिष्णु देश दुनिया में कहीं भी नहीं मिल सकता. कश्मीर में 70 प्रतिशत आबादी मुस्लिमों की है. सत्ता से लेकर हर क्षेत्र में उनका कब्जा है. साढ़े तीन लाख पंडितों पर अत्याचार हुआ. आज वे दर-दर भटक कर शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं. फिर भी बहुसंख्यक हिन्दुओं पर असहिष्णु होने का आरोप लगाया जाता है, ये कहां तक उचित है? कश्मीर में वाल्मिकी समाज के ढाई लाख लोग आज भी बदहाली का जीवन जीने को विवश हैं, न उन्हें नागरिकता दी गई, न ही वे कश्मीर में नौकरी या अन्य रोजगार पा सकते हैं. ये दोहरा रवैया क्यों? कश्मीर की समस्या पर हम देशवासी सवाल क्यों नहीं पूछते? सरकार और देश की सर्वोच्च न्यायपालिका को इस दिशा में गहन चिंतन करने की आवश्यकता है.
उन्होंने कहा कि कश्मीर में जो हो रहा है, वह बेहद चिंताजनक है. आशंका व्यक्त करते हुए कहा कि देश में पांच सौ कश्मीर बन गए हैं. ये हालात देश के लिए चिंताजनक हैं. देश का सर्वोच्च न्यायालय महाकाल, शबरीमला पर अपना फैसला त्वरित सुना देता है. किंतु बहुसंख्यक (हिन्दू) समाज की आस्था के विषय राम मंदिर पर फैसला देने में इतनी देरी क्यों? रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बताते हुए कहा कि रोहिंग्या मसले पर बर्मा ने अपना काम कर दिया, अब भारत को भी रोहिंग्या मसले पर त्वरित फैसला लेना चाहिए. आज कश्मीर में देश की सीमा की सुरक्षा के लिए तैनात सैनिकों पर अपने ही देश के कश्मीरी हमले कर रहे हैं, ये हालात चिंताजनक हैं. उन्होंने आश्चर्य जताया कि देश का सर्वोच्च न्यायालय राफेल पर पूछ रहा है, पर अनुच्छेद 35A पर चुप्पी क्यों?