केशव शर्मा
सिनेमा को किसी भी समाज का दर्पण माना जाता है क्योंकि सिनेमा के द्वारा ही हम उसके आसपास बसने वाले समाज का प्रतिबिंब देख पाते हैं. सिनेमा हमें समाज की कड़वी सच्चाइयों एवं अनछुए पहलुओं के बारे में जानकारी देता है. ऐसी ही एक फिल्म “बस्तर : द नक्सल स्टोरी” आज सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. फिल्म के निर्देशक सुदीप्तो सेन तथा इसके निर्माता विपुल अमृतलाल शाह है. मुख्य भूमिका में अदा शर्मा (आईपीएस नीरजा माधवन), यशपाल शर्मा (एडवोकेट उत्पल) तथा राइमा सेन (वान्या रॉय) हैं.
फिल्म पिछले 60 वर्षों से भारत में व्याप्त माओवाद -नक्सलवाद वामपंथ के गहरे गठजोड़ को उजागर करती है. अभिनेत्री अदा शर्मा ने आईपीएस नीरजा माधवन के किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय किया है. वे सीधी मुद्दे पर बात करने वाली एक नो-नॉन्सेंस पुलिस अधिकारी के रुप में नजर आई हैं. एक तरफ नीरजा माधवन जहाॅं बस्तर के जंगलों में नक्सलियों से लड़ रही हैं वहीं दूसरी तरफ वे वामपंथी बुद्धिजीवी गिरोह – लेखक , मीडिया एवं अन्य से भी न्यायालय में एक कानूनी लड़ाई लड़ रही है. यह गिरोह समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय रुप से भारत विरोधी ताकतों को बल देता है तथा अपराधी पाए जाने पर भी अपने किए गए कुकृत्य को सही साबित करने पर भी अड़ जाता है.
निर्देशन की बात करें तो सुदीप्तो सेन ने अपनी पिछली फिल्म “द केरला स्टोरी” की तुलना में इस फिल्म में ज्यादा बेहतर काम किया है. फिल्म के कुछ दृश्य यूॅं तो मन को विचलित कर सकते हैं लेकिन वह इस कड़वी सच्चाई से हमें रूबरू भी करवाते हैं. फिल्म की पटकथा तथा सिनेमैटोग्राफी एक लय पकड़ कर साथ चलती हैं. फिल्म हमें दिखाती है कि है वामपंथी नक्सलवाद और माओवाद की जड़ें कितनी गहरी हैं और यह लड़ाई आगे भी हमें परस्पर लड़नी होगी. नक्सलवाद कैसे एक अंतर्राष्ट्रीय गिरोह के रूप में काम कर रहा है जिसमें यह अपना एजेंडा देश – विदेश के अलग अलग मंचों पर प्रस्तुत करता है, चाहे फिर कोई साहित्यिक सम्मेलन हो या कोई प्रसिद्ध विश्वविद्यालय.
फिल्म का एक दृश्य बहुत रोचक है. फिल्म में एक इरशाद नाम का चरित्र है जिसे दिन के उजाले में एक गाॅंधीवादी विचारक एवं चरखा चलाने वाला एक शांतिप्रिय आदमी बताया गया है जबकि वह रात के अंधेरे में नक्सलियों के लिए देश-विदेश से हथियारों का बंदोबस्त करता है.
एक बार फिर अभिनय की बात करें तो अदा शर्मा ने अपने किरदार नीरजा माधवन को जीवंत किया है के साथ पूरी तरह न्याय किया है जो सही को सही और गलत को गलत कहने से बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाती. एक दृश्य में तो वह गृहमंत्री को भी कटघरे में खड़ी कर देती हैं.
सारगर्भित रुप से “बस्तर: द नक्सल स्टोरी” फिल्म हर पहलू पर खरी उतरती है, दमदार अभिनय एवं निर्देशन फिल्म को बड़े पर्दे पर देखने लायक बनाती है और हमें नक्सलवाद की सच्चाई से अवगत कराती है.
जयपुर