—हिंगोनिया गोशाला में अव्यवस्था का मामला
—गोसेवकों ने संभाला मोर्चा
—गंदगी से अटे बाड़े अब साफ, गायों को राहत
विसंकेजयपुर
जयपुर। जो काम प्रशासन को बहुत पहले करना चाहिए था वह काम जयपुर के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित गो—सेवकों ने कर दिखाया। प्रशासन की अनदेखी और घोर लापरवाही के चलते अव्यवस्थाओं का पर्याय बन चुके जयपुर के हिंगोनिया गो पुनर्वास केन्द्र (गोशाला) में गोसेवकों ने श्रमसाधना क्या शुरू की गोशाला के हालात बदले—बदले नजर आने लगे। प्रशासनिक लापरवाही और लगातार बरसात से दलदल में बदली जमीन अब साफ हो चुकी है। गायें न केवल ठीक ढंग से चारा—पानी ले रही है बल्कि बाड़ों में आराम से बैठ भी पा रही हैं।
ज्ञात हो कि नगर निगम प्रशासन की ओर से समय पर ध्यान नहीं देने से शहर से बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गोशाला में गायों के बाड़ों में गंदगी के ढेर लग गये थे। गोशाला में घुटनों तक कीचड़ जमा हो गया था। कीचड के कारण न तो गाय बैठ पा रही थी और न ही ढंग से खड़ी रह पा रही थीं। दर्जनों गायें बूरी तरह से कीचड में फंसी हुई थी। इसके चलते अनेक गायों की मौत भी हो चुकी थी।
जब जयपुर के स्वयंसेवकों को इसकी जानकारी हुई तो वे हिंगोनिया गोशाला की तरफ दौड़ पड़े। गायों को कीचड़ में फंसा देखकर गायों को बचाने में लग गये। दिन भर श्रमदान किया। इतनी बड़ी गोशाला की स्वच्छता एवं व्यवस्था के लिए एक दिन पर्याप्त नहीं था। इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जयपुर विभाग ने गोशाला में श्रमदान की योजना तैयार की। योजना के अंतर्गत जयपुर के अलग-अलग हिस्सों से स्वयंसेवक एवं गोसेवा गतिविधि से जुडे कार्यकर्ता प्रतिदिन श्रमदान करने पहुंचते थे। गोसेवकों के संगठित श्रम से गोशाला की कायाकल्प होने लगी। गंदगी व कीचड़ से भरे बाड़े साफ होने लगे। संघ से प्रेरित इन गोसेवकों की ओर से निरंतर बीस दिन तक प्रत्यक्ष सेवा कर गोमाता की कृपा का लाभ लिया गया। गोसेवकों के पांच घण्टे के अथक परिश्रम से गोशाला का स्वरूप निखर गया। अब गायें न केवल पहले से बेहतर चारा खा रही है बल्कि आराम से उठ-बैठ पा रही थी। गोसेवकों के प्रयास ने अनेक गायों को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया।
गोशाला में जयपुर के 21 हिस्सों से गोसेवक पहुंचे। इस गोसेवा के कार्यक्रम में 433 गोसेवकों ने भाग लिया। पूरे मनोयोग से गोशाला की व्यवस्था सुधारने में अपना योगदान दिया। सब गोसेवकों ने कुल मिलाकर 2265 घण्टें श्रमदान किया।
गोशाला की अव्यवस्था के कारण
समय पर मजदूरी देने की मांग को लेकर जुलाई माह के अंत में गोशाला में कार्यरत मजदूर हड़ताल पर चले गए। करीब एक सप्ताह तक हड़ताल चली। इस दौरान गायों के बाड़ों से न गोबर उठा और न चारे की खेळ से गंदगी साफ हुई। बरसात ने कोढ में खाज का काम किया। गोबर और मिट्टी ने लगभग दलदल का रूप ले लिया। कीचड़ के कारण गायें ठीक से न खा—पी पाई और न ढंग से बैठ पाई। इसके चलते अनेक गायों को असमय काल का ग्रास बनना पड़ा।
चर्चा, राजनीति या गोसेवा
समाचार पत्रों में गोशाला में गायों की मौत का मामला उठा तो समाज की ओर से तीन तरह की प्रतिक्रिया हुई। पहली यह कि अखबार पढ़ा और शासन-प्रशासन को कोस दिया। दूसरी प्रतिक्रिया राजनीतिक दलों की थी और यह उनके स्वभाव अनुकूल ही थी। सत्ताधारी दल बचाव की मुद्रा में बयानबाजी करता रहा तो विपक्ष यानी कांग्रेस ने गायों को बचाने और गोशाला सुधार की सारी जिम्मेदारी जयपुर के आराध्य देव गोविन्द देव जी को सौंपकर अपनी जिम्मेदारी से इतिश्री कर ली। कांग्रेस ने शहर में पदयात्रा निकाली। पदयात्रा विभिन्न मार्गों से होती हुई गोविन्ददेव मंदिर पहुंची। यहां गोविन्ददेव जी के दर्शन किये और गायों की रक्षा करने की प्रार्थना की एवं विधानसभा के सत्र में शोरशराबा कर मीडिया की सुर्खिया बटोरी। भाजपा सरकार का इस विषय पर चर्चा नहीं कराना यह भी किसी को समझ में नहीं आया। सरकार द्वारा दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। तीसरी प्रतिक्रिया उन संवेदनशील गोसेवकों की ओर से आई जिन्होंने विचार किया कि तत्काल क्या संभव है और क्या जरूरत है। गोसेवकों की भांति अन्य लोग भी गोशाला पहुंचकर सुधार कार्य में लग गये होते तो स्थिति जल्दी सुधर सकती थी और कुछ और गायों को असमय काल के ग्रास बनने से रोका जा सकता था।