लोकमंथन के माध्यम से नवउदारवाद, वैश्वीकरण के मौजूदा दौर में राष्ट्रीयता का देशज तैयार करने की योजना – जे. नंदकुमार जी

lokmanthan-300x181‘राष्ट्र सर्वोपरि’, विचारकों एवं कर्मशीलों का राष्ट्रीय विमर्श ‘लोकमंथन’ का आयोजन भोपाल में

नई दिल्ली. लोकमंथन, देश में पहली बार एक ऐसा आयोजन हो रहा है, जो जयपुर में हर साल आयोजित होने वाले अंग्रेजीदा लिटरेरी महोत्सव से एकदम अलग होगा. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 12 से 14 नवम्बर तक आयोजित किए जाने वाले इस आयोजन की विशेषता यह होगी कि इसमें राष्ट्र निर्माण में कला, संस्कृति और इतिहास की भूमिका पर विस्तार में चर्चा होगी और ख़ास बात यह कि यह मंथन औपनिवेशिक मानसिकता से आजादी के लिए होगा.

इस तीन दिवसीय महोत्सव का आयोजन मध्यप्रदेश सरकार और प्रज्ञा प्रवाह नामक संस्था द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा और इसमें कला, संस्कृति, इतिहास, राजनीति, अर्थ नीति समाज-विज्ञान और तमाम दूसरे क्षेत्रों से जुड़े युवा और बुद्धिजीवी मिलकर सार्थक संवाद करेंगे और राष्ट्रवादी सोच के अनुरूप चर्चा करेंगे. लोकमंथन का मकसद यही है कि राष्ट्र निर्माण को लेकर अब तक बनी पश्चिम परस्त अवधारणा को दूर कर भारत के इतिहास, कला, विज्ञान, संस्कृति, भूगोल और मनोविज्ञान को यूरोपीय आस्थावाद से बाहर निकालकर राष्ट्रीयता की संकल्पना की स्थापना की जाए.

यह जानकारी नई दिल्ली स्थित इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र में 10 नवम्बर को आयोजित प्रेस वार्ता में दी गई. प्रेस वार्ता को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नन्द कुमार जी, कार्यक्रम के सचिव डॉ. चन्द्र प्रकाश द्विवेदी जी तथा प्रो. राकेश सिन्हा ने संबोधित किया. नन्द कुमार जी ने बताया कि लोकमंथन के माध्यम से नवउदारवाद और वैश्वीकरण के मौजूदा दौर में राष्ट्रीयता का देशज या यूं कहें कि शुद्ध भारतीय पाठ तैयार करने की योजना है. कार्यक्रम में भोपाल स्थित भारत भवन की भी हिस्सेदारी होगी और यह आयोजन पूरी तरह लोकवादी भी होगा. इस महोत्सव को लगभग 130 विद्वान वक्ता संबोधित करेंगे.

इस कार्यक्रम के आयोजन समिति के अध्यक्ष मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी हैं. इस कार्यक्रम की एक अन्य विशेषता यह है कि इसमें स्वतंत्र सोच रखने वालों की भागीदारी अहम होगी. आयोजकों के मुताबिक मीडिया, साहित्य, कला और संस्कृति से जुड़े स्वतंत्र विचारकों ने इस महोत्सव में भागीदारी की सहमति दी है. इस महोत्सव को एक सालाना आयोजन के रूप में स्थापित किया जाएगा. इसके लिए एक वैचारिक मंच प्रज्ञा प्रवाह के नाम से स्थापित किया गया है. महोत्सव के आयोजन और इसके लिए स्थापित वैचारिक मंच के सन्दर्भ में बताया कि अभी तक इस देश में बौद्धिक मंथन, वैदेशिक या यूरोपीय सोच के तहत होता रहा है. राष्ट्रीयता की संकल्पना को मजबूत बनाने के लिए जरूरी है कि हम अपनी नजर से देश, समाज, संस्कृति इतिहास और कला को देखने की कोशिश करें.

भोपाल में देश भर के समाज विज्ञानी, चिन्तक, कलाकार रचनाधर्मी और स्वतंत्र विचारक भारत और भारतीय समाज को पश्चिम की नजर से देखने की प्रवृति को बंद करने की अपील करने की साथ ही नवउदारवाद और वैश्वीकरण के सन्दर्भ में राष्ट्रवादी चिंतन की स्थापना का आग्रह करेंगे. तीन दिन तक चलने वाले इस महोत्सव में उद्घाटन सत्र के अलावा चार अन्य सत्रों में अलग-अलग विषयों में चर्चा होगी.

 

 

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

20 − two =