कल रहें ना रहें, फोटो खिंचवा लेते हैं… – वीरेंद्र सिंह

कारसेवक श्रृंखला-

जयपुर। विश्व संवाद केंद्र जयपुर से संस्मरण साझा करते हुए जयपुर के वीरेंद्र सिंह चौहान बताते हैं कि, मैं 1992 की कारसेवा में गया था। मुझे वो दिन याद है जब मैं अपने चार साथियों के साथ जयपुर से अयोध्या के लिए रवाना हुए थे। हमारे जयपुर से अन्य कार सेवक भी थे।
हम सभी ने 1 से 4 दिसंबर तक का समय अयोध्या में शांतिपूर्वक बिताया अचानक से 5 दिसंबर को घोषणा की गई, कल सुबह यानी 6 दिसंबर को सरयू की मिट्टी सभी कारसेवकों को लानी है और मंदिर के आगे एक-एक मुट्ठी डाल देना है। कहा गया था कि यही कारसेवा है और इसके पश्चात सभी को अपने घरों के लिए रवाना होना है। हम चारों इस घोषणा के बाद फोटो खिंचवाने के लिए बाजार की ओर गए। इस समय हम सभी के मन में एक विचार आया, ”क्या पता हम कल रहें या ना रहें, इसलिए फोटो खिंचवा लेते हैं।” हमने दुकानदार को बोला कि यह फोटो हमारे पते पर पहुंचा देना।
वापस आने के बाद कुछ समय सारे कारसेवक मिलकर चर्चा करने लगे। इसी दौरान सवाल खड़े होने लगे। क्या इसीलिए आए हैं? क्या अयोध्या की बस मिट्टी लाकर ही डालनी थी? कारसेवकों के मन में संतुष्टि का भाव नहीं था। सबका यही मानना था कि ऐसा आखिर कब तक चलता रहेगा? तब मैंने सोचा बात तो सही है। उस दिन सभी कारसेवकों ने अनमने ढंग से खाना खाया और रात को सोने चले गए। सुबह 6 दिसंबर को हम स्नान करके सरयू की मिट्टी ले आए और मंदिर की ओर जाने लगे। वहीं ढांचे के पास में मंच पर साध्वी ऋतंभरा का व्याख्यान चल रहा था।
व्याख्यान समाप्त होते ही हमने देखा कि कुछ कंकड़ हमारी और आने लगे। वहां सुरक्षा व्यवस्था बहुत अधिक थी, चारों तरफ तारबंदी की गई थी। पीछे से कंकड़ पत्थर आते देख, हमने पीछे मुड़कर देखा तो कंकर की बारिश होने लगी तथा पुलिस प्रशासन वहां से हट गया और तभी सबसे पहले नागा साधु अपने त्रिशूल हाथ में लिए आगे बढ़े जा रहे हैं।
पीछे से आडवाणी उन्हें रोकने के लिए माइक पर बोले “भाइयों हम शांतिप्रिय हैं।” परंतु किसी ने उनकी और ध्यान नहीं दिया। कुछ ही देर में यहां का माहौल बदल गया। लगभग एक किलोमीटर तक भागने के बाद मैंने मेरे मित्र पूरन को कहा “भाई रुको, हम यहां किस काम के लिए आए हैं, क्या हम भागने के लिए आए थे?” पूरन ने कहा- नहीं, हम तो कारसेवा में मरने के लिए आए हैं। मैंने कहा चलो तो फिर वापस। तभी अचानक से ऊपर से पत्थर आने शुरू हो गए। कुछ लोग घायल हो गए थे। वहीं कुछेक की मौत भी हो गई थी। कुछ ही घंटों बाद जो दृश्य आंखों के सामने था वो आज भी प्रफुल्लित कर रहा है। रामलला की मूर्ति को स्थापित किया गया व उनकी आरती उतारी गई। सभी कारसेवक धीरे- धीरे अपने-अपने घरों की ओर लौटने लगे।
हम वापस अयोध्या स्टेशन पहुंचे। दिनभर के घटनाक्रम के बाद अब हमें बहुत भूख लगी थी। हम ट्रेन में बैठकर फैजाबाद पहुंचे। वहां पूड़ियां बांटी जा रही थी। सभी पूडियां लेने लगे तो हमने भी ले ली। परंतु थोड़ी देर बाद एक अफवाह फैली की पूडियां मत खाना, इसमें जहर मिलाया है। अब हम सोच में पड़ गए कि पूडियां खाएं कि ना खाएं। पर थोड़ी देर बाद हमने भूख के कारण पूडियां खा ली। हम वापस जिस भी स्टेशन पर पहुंचे। प्रत्येक स्थान पर हमारी आरती उतारी गई, भव्य स्वागत किया गया। ऐसा लग रहा था मानो हम एक युद्ध जीत कर आए हैं और अंत में हम अपने घर पहुंचे। आज रामलला का भव्य मंदिर बनता हुआ देखकर लग रहा है कि हमारी यात्रा सफल हुई।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

16 + 7 =